Saturday, February 14, 2009

मेरा इंतज़ार करना

वादा वो मोहब्बत का मैं निभाऊँगा एक दिन
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥
ज़माने से अलग पह्चान है मेरी
दुनियाँ की भीड में खोया नहीं हूँ
जुदाई की रात चाहे लम्बी सही
सुबह के इंतज़ार में सोया नही हूँ
हर पल बस तुमको ही याद किया
आँखें नम हुईं लेकिन रोया नही हूँ
कैसे गुजरे थे ये दिन मैं सुनाऊँगा एक दिन
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥

व्यस्त हूँ ज़िन्दगी की उलझनों में
मत सोचना कि तुमसे प्यार नही है
वादा करके जुबान से मुकर जाऊँ
ऐसे तो मिले मुझे संस्कार नहीं है
फ़ैसला मेरा जमाने ने सुन लिया
तुम बिन ज़िन्दगी स्वीकार नहीं है
मैने तुमको चाहा है तुमको पाऊँगा एक दिन ॥
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥
आज हम और तुम इतने दूर सही
यह तो अपनी किस्मत का लेखा है
हमें मिलने से कोई न रोक पायेगा
मेरे हाथ में तुम्हारे नाम की रेखा है
तुम मंज़िल हो मेरे इस सफ़र की
कितनी बार तुम्हें सपने में देखा है
सपनों को हकीकत में बदल जाऊँगा एक दिन
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥
दिल की हर आरज़ू को अंजाम दूँगा
तुम अधूरी हसरतों का मलाल रख्नना
उदास रहने से झुर्रियाँ पड जाती हैं
अपने हसीन चेहरे का खयाल रखना
ज़िन्दगी छोटी सी है और काम ज्यादा
मेरे लिये बचा कर कुछ साल रख्नना
अपनी ज़िन्दगी तुम पर मैं लुटाऊँगा
एक दिन तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊंगा एक दिन ॥
सच्चे दिल की सदायें कुबूल होती हैं
खुदा को तुम दुआयें तमाम लिखना
दीवानापन अगर हद से गुजरने लगे
अपनी चाहत पर कोई कलाम लिखना
जब दिल मिले हैं तो हम भी मिलेंगे
मेरा नाम जोडकर अपना नाम लिखना
तुमको ही अपनी पह्चान मैं बनाऊँगा एक दिन
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥
वह सवेरे का सूरज जब भी निकलेगा
जुदाई की ये काली रात गुजर जायेगी
उतरेगी समंदर में जब अपनी किश्ती
मंज़िल तक छोडने खुद लहर जायेगी
साथ मिलकर किसी दिन ढूँढ ही लेंगे
ये खुशी हमसे बच कर किधर जायेगी
हँसी तुम्हारे होठों पर मैं सजाऊँगा एक दिन
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥
हमसफ़र बन कर हम जब भी चलेंगे
मेरे हाथों में अपना हाथ थमाना होगा
ज़िन्दगी के तन्हा पथरीले रास्तों पर
मेरे हर कदम से कदम मिलाना होगा
वह दिन आयेगा मुझपे यकीन करना
बाँहों में आस्माँ कदमों में जमाना होगा
जमाने को तुम्हारे आगे मैं झुकाऊँगा एक दिन
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥
बढते हुए कदम अब नहीं रुकने वाले
तीर कब का निकल चुका है कमान से
चाहे जैसा भी हो अंजाम देखा जायेगा
मोहब्बत नहीं डरती किसी इम्तहान से
जमीन वाले बस देखते ही रह जायेंगे
जब माँग लाऊँगा मैं तुम्हे आसमान से
'विजय' तुम्हारी किस्मत में लिख जाऊँगा एक दिन ॥
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥

'विजय सिंह'

Friday, February 13, 2009

निभाई है यहाँ हमने मुहब्बत भी सलीके से

निभाई है यहाँ हमने मुहव्बत भी सलीके से
दिए जो रंज़ो-ग़म इसने लगाए हमने सीने से

हमेशा ज़िंदगी जी है यहाँ औरों की शर्तों पर
मिले मौका अगर फिर से जिऊँ अपने तरीके से

न की तदबीर ही कोई , न थी तकदीर कुछ जिनकी
सवालों और ख्यालों मे मिले हैं अब वो उलझे से।

जो टूटे शाख से यारो अभी पत्ते हरे हैं वो
यकीं कुछ देर से होगा नही अब दिन वो पहले से

घरों से उबकर अब लोग मैखाने मे आ बैठे
सजी हैं महफिलें देखो यहां कितेने क़रीने से

"ख्याल" अपनी ही करता है कहाँ वो मेरी सुनता है
नज़र आते हैं उसके तो मुझे तेवर ही बदले से


सतपाल 'ख़्याल

अब आग के लिबास को ज्यादा ना दाबिये

अब आग के लिबास को ज्यादा न दाबिए।
सुलगी हुई कपास को ज्यादा न दाबिए।

ऐसा न हो कि उँगलियाँ घायल पड़ी मिलें
चटके हुए गिलास को ज्यादा न दाबिए।

चुभकर कहीं बना ही न दे घाव पाँव में
पैरों तले की घास को ज्यादा न दाबिए।

मुमकिन है खून आपके दामन पे जा लगे
ज़ख़्मों के आस पास यों ज्यादा न दाबिए।

पीने लगे न खून भी आँसू के साथ-साथ
यों आदमी की प्यास को ज्यादा न दाबिए।


डॉ कुँअर बेचैन

Wednesday, February 11, 2009

सूर्य मन्दिर , मोढेरा ( गुजरात)


अहमदाबाद से १०० किमी की दुरी पर मोढेरा में बहुत ही खूबसूरत प्राचीन सूर्य मन्दिर है। इस मन्दिर को ११वी सदी में राजा भीमदेव सोलंकी ने बनवाया था । खँडहर की अवस्था में होने के बावजूद यह मन्दिर बेहद ही खूबसूरत है।

अब यहाँ पर कोई पूजा नही होती है।

यहाँ हर साल जनवरी माह में नर्त्योत्सव होता है। जिसमे भारतवर्ष की मशहूर नार्त्यांग्नाएं भाग लेती हैं।

Saturday, February 7, 2009

तेरा इमोशनल अत्याचार !!!!!!!

बेहद अच्छा गाना है, लीक से हटकर

Friday, February 6, 2009

ये रात , ये तन्हाई

ये रात, ये तन्हाई
ये दिल के धड़कने की आवाज़
ये सन्नाटा
ये डूबते तारों की खामोश ग़ज़ल खवानी
वक़्त की पलकों पर सोती हुई वीरानी
जज़्बात -ऐ - मुहब्बत की
ये आखिरी अंगडाई
बजती हुई हर जानिब
ये मौत की शहनाई
सब तुम को बुलाते हैं
पलभर को तुम आ जाओ
बंद होती मेरी आंखों में
मुहब्बत का
एक ख्वाब सजा जाओ
मीना कुमारी ' नाज़ '

पूछते हो तो सुनो, कैसे बसर होती है

पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है 
 रात खैरात की सदके की सहर होती है 
 साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब 
 दिल ही दुखता है ना अब आस्तीन तर होती है 
 जैसे जागी हुई आंखों में चुभें कांच के ख्वाब 
 रात इस तरह दीवानों की बसर होती है 
 गम ही दुश्मन है मेरा गम ही को दिल ढूंढ़ता है 
 एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है 
 एक मरकज़* की तलाश एक भटकती खुश्बू
 कभी मंजिल कभी तम्हीद* -ऐ -सफर होती है 

  स्व मीना कुमारी *[markaz=focus; tamhiid=prelude/preamble]

Tuesday, February 3, 2009

आपके लिए एक हरयाणवी गीत यहाँ प्रस्तुत है, उम्मीद है आपको पसंद आएगा गीत के अंत में आपकी सुविधा के लिए भावार्थ भी दिया है। ( इसके रचयिता अज्ञात हैं )

अरै मैं बुरी कंगाली धन बिन कीसी रै मरोड़ ?
भोगा, बुरी रै कंगाली, धन बिन कीसी रै मरोड़!
धनवन्त घरां आणके कह जा
निरधन ऊँची-नीची सब सह जा
सर पर बंधा-बंधाया रह जा
माथे पर का रै मोड़ ।
अरै मैं बुरी कंगाली धन बिन कीसी रै मरोड़!
निरधन सारी उमर दुख पावे
भूखा नंग रहके हल बाहवे
भोगा, बिना घी के चूरमा
तेरी रहला कमर तै रै तोड़
अरै मैं बुरी कंगाली धन बिन कीसी रै मरोड़ !


भावार्थ
--'बुरी है ग़रीबी, धन के बिना कैसा नखरा? मैं सब भोग चुका हूँ, गरीबी बुरी बला है । धन के बिना कोई
नखरा नहीं किया जा सकता । धनी ग़रीब के घर आकर, जो चाहता है कहकर चला जाता है । ग़रीब व्यक्ति उसकी हर ऊँची-नीची बात सह जाता है । धन के बिना तो सर पर बंधी पगड़ी का भी कोई मोल नहीं रह जाता । अरे मैं सब झेल चुका हूँ । बहुत बुरी है ये कंगाली । धन के बिना कोई सुख नहीं पाया जा सकता है । ग़रीब व्यक्ति सारी उमर दुख पाता है । वह भूखा-नंगा रह कर हल चलाता है और खेत जोतता है । अरे ओ भोगा, क्या किया तूने ? बिना घी की रोटी का जो चूरमा (चूरा) तूने कपड़े में बांध कर अपनी कमर पर लटका रखा है, वह तेरी कमर का बोझ बनकर उसे तोड़ रहा है । अरे, मैं यह बुरी कंगाली ख़ूब झेल चुका हूँ । पैसे के बिना जीवन में कोई सुख नहीं है ।'