मंज़र है वही ठठक रही हूँ
हैरत से पलक झपक रही हूँ
ये तू है के मेरा वहम है
बंद आँखों से तुझ को तक रही हूँ
जैसे के कभी न था तार्रुफ़
यूँ मिलते हुए झिझक रही हूँ
पहचान मैं तेरी रोशनी हूँ
और तेरी पलक पलक रही हूँ
क्या चैन मिला है सर जो उस के
शानों पे रखे सिसक रही हूँ
अंदर से तमाम थक रही हूँ
परवीन शाकिर