Thursday, July 9, 2009

मंज़र है वही ठठक रही हूँ
हैरत से पलक झपक रही हूँ

ये तू है के मेरा वहम है
बंद आँखों से तुझ को तक रही हूँ

जैसे के कभी न था तार्रुफ़
यूँ मिलते हुए झिझक रही हूँ

पहचान मैं तेरी रोशनी हूँ
और तेरी पलक पलक रही हूँ

क्या चैन मिला है सर जो उस के
शानों पे रखे सिसक रही हूँ

इक उम्र हुई है ख़ुद से लड़ते
अंदर से तमाम थक रही हूँ

परवीन शाकिर

Wednesday, May 20, 2009

ज़ख्म था ज़ख्म का निशान भी था
दर्द का अपना इक मकान भी था

दोस्त था और मेहरबान भी था
ले रहा मेरा इम्तिहान भी था

शेयरों में गज़ब़ उफान भी था
कर्ज़ में डूबता किसान भी था

आस थी जीने की अभी बाकी
रास्ते में मगर मसान भी था

कोई काम आया कब मुसीबत में
कहने को अपना ख़ानदान भी था

मर के दोज़ख मिला तो समझे हम
वाकई दूसरा जहान भी था

उम्र भर साथ था निभाना जिन्हें
फ़ासिला उनके दरमियान भी था

ख़ुदकुशी ‘श्याम’'कर ली क्यों तूने
तेरी क़िस्मत में आसमान भी था

Tuesday, May 12, 2009

तुम मुझे पुकार लो!

इसीलिए खड़ा रहा

कि तुम मुझे पुकार लो!


ज़मीन है न बोलती,

न आसमान बोलता,

जहान देखकर मुझे

नहीं ज़बान खोलता,

नहीं जगह कहीं जहाँ

न अजनबी गिना गया,

कहाँ-कहाँ न फिर चुका

दिमाग-दिल टटोलता;

कहाँ मनुष्‍य है कि जो

उमीद छोड़कर जिया,

इसीलिए अड़ा रहा

कि तुम मुझे पुकार लो;

इसीलिए खड़ा रहा

कि तुम मुझे पुकार लो;


तिमिर-समुद्र कर सकी

न पार नेत्र की तरी,

वि‍नष्‍ट स्‍वप्‍न से लदी,

विषाद याद से भरी,

न कूल भूमि का मिला,

न कोर भेर की मिली,

न कट सकी, न घट सकी

विरह-घिरी विभावरी;

कहाँ मनुष्‍य है जिसे

कभी खाली न प्‍यार की,

इसीलिए खड़ा रहा

कि तुम मुझे दुलार लो!

इसीलिए खड़ा रहा

कि तुम मुझे पुकार लो!


उजाड़ से लगा चुका

उमीद मैं बाहर की,

निदाघ से उमीद की,

वसंत से बयार की,

मरुस्‍थली मरीचिका

सुधामयी मुझे लगी,

अँगार से लगा चुका

उमीद मैं तुषार की;

कहाँ मनुष्‍य है जिसे

न भूल शूल-सी गड़ी,

इसीलिए खड़ा रहा

कि भूल तुम सुधार लो!

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!

पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो!


हरिवंश राय बच्चन

Saturday, April 25, 2009

वीर

राष्ट्र कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी की पुण्य तिथि पर


सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं

स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं सच् है , विपत्ति जब आती है ,
कायर को ही दहलाती है ,
सूरमा नहीं विचलित होते ,
क्षण एक नहीं धीरज खोते ,
विघ्नों को गले लगाते हैं ,
कांटों में राह बनाते हैं ।

मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं ,
संकट का चरण न गहते हैं ,
जो आ पड़ता सब सहते हैं ,
उद्योग - निरत नित रहते हैं ,
शुलों का मूळ नसाते हैं ,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं ।

है कौन विघ्न ऐसा जग में ,
टिक सके आदमी के मग में ?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाव उखड़ ,
मानव जब जोर लगाता है ,
पत्थर पानी बन जाता है ।

गुण बड़े एक से एक प्रखर ,
हैं छिपे मानवों के भितर ,
मेंहदी में जैसी लाली हो ,
वर्तिका - बीच उजियाली हो ,
बत्ती जो नहीं जलाता है ,
रोशनी नहीं वह पाता है ।



Thursday, April 23, 2009

चलना हमारा काम है ।

शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी द्वारा रचित एक प्रेरणा दायक कविता यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ, उम्मीद है पसंद आएगी

गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है ।

कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है ।

जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है ।

इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है ।

मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है ।

साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है ।

फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिक्ष्रित गरल,
वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है ।

Saturday, April 18, 2009

Tuesday, April 7, 2009

अक़्स-ए-खुशबू हूँ

अक़्स-ए-खुशबू हूँ बिखरने से ना रोके कोई
और बिखर जाऊँ तो, मुझ को ना समेटे कोई

काँप उठती हूँ मैं सोच कर तनहाई में
मेरे चेहरे पर तेरा नाम ना पढ़ ले कोई

जिस तरह ख़्वाब हो गए मेरे रेज़ा रेज़ा
इस तरह से, कभी टूट कर, बिखरे कोई

अब तो इस राह से वो शख़्स गुजरता भी नहीं
अब किस उम्मीद पर दरवाजे से झांके कोई

कोई आहट, कोई आवाज, कोई छाप नहीं
दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान है आए कोई


परवीन शाकिर

यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे

यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
कांधे पे अपने रख के अपना मजार गुज़रे

बैठे रहे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ से एक दिन बहार गुज़रे

बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतारे कोई तो पार गुज़रे

तू ने भी हम को देखा हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे



मीना कुमारी 'नाज़'

Saturday, April 4, 2009

बना गुलाब तो कांटें चुभा गया इक शख्स

बना गुलाब तो कांटें चुभा गया इक शख्स
हुआ चिराग तो घर ही जला गया इक शख्स

तमाम रंग मेरे और सारे ख्वाब मेरे
फ़साना कह के फ़साना बना गया इक शख्स

मैं किस हवा में उडूं किस फजा में लहराऊँ
दुखों के जाल हर -सू बिछा गया इक शख्स

पलट सकूँ मैं न आगे बढ़ सकूँ जिस पर
मुझे ये कौन से रास्ते लगा गया इक शख्स

मुहब्बतें भी अजीब उस की नफरतें भी कमाल
मेरी तरह का ही मुझ में समा गया इक शख्स

वो महताब था मरहम -बा -दस्त आया था
मगर कुछ और सिवा दिल दुखा गया इक शख्स

[बा -दस्त = हाथ में ; सिवा = ज्यादा ]

खुला ये राज़ के आइना -खाना है दुनिया
और इस में मुझ को तमाशा बना गया इक शख्स

[आइना -खाना = शीशे का घर ]


ओबैदुल्लाह अलीम

अजीज़ इतना ही रखो

अजीज़ इतना ही रखो के जी संभल जाये
अब इस कदर भी ना चाहो के दम निकल जाये

मिले हैं यूं तो बहुत आओ अब मिलें यूं भी
के रूह गरमी -ऐ -अनफास से पिघल जाये

मुहब्बतों में अजब है दिलों को धड़का सा
के जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाये

रहे वो दिल जो तमन्ना - ऐ -ताज़ा तर में रहे
खुशा वो उम्र जो ख़्वाबों ही में बहल जाये

मैं वो चराग -ऐ -सर -ऐ - रहगुज़ार -ऐ -दुनिया हूँ
जो अपनी जात की तन्हाईयों में जल जाये

हर एक लहजा यही आरजू यही हसरत
जो आग दिल में है वो शेर में भी ढल जाये


अब्दुल्लाह अलीम

Friday, April 3, 2009

सफ़र नया ज़िंदगी का तुमको

सफ़र नया ज़िंदगी का तुमको न रास आए तो लौट आना
फ़िराक़ में मेरे नींद तुमको अगर न आए तो लौट आना

नहीं है अब कैफ़ कोई बाक़ी तुम्हारे जाने से ज़िंदगी में
तुम्हें भी रह-रह के याद मेरी अगर सताए तो लौट आना

तेरे लिए मेरा दर हमेशा इसी तरह से खुला रहेगा
अगर कभी वापसी का दिल में ख़याल आए तो लौट आना

बग़ैर तेरे बुझा- बुझा है बहार का ख़ुशगवार मंज़र
तुझे भी यह ख़ुशगवार मंज़र अगर न भाए तो लौट आना

तुम्हारी सरगोशियाँ अभी तक वह मेरे कानों में गूँजती हैं
हसीन लमहा वह ज़िंदगी का जो याद आए तो लौट आना

ग़ज़ल सुनाऊँ मैं किसको हमदम कि मेरी जाने ग़ज़ल तुम्हीं हो
दोबारा वह नग़म-ए- मोहब्बत जो याद आए तो लौट आना

ख़याल इसका नहीं कि दुनिया हमारे बारे में क्या कहेगी
जो कोई तुमसे न अपना अहदे वफ़ा निभाए तो लौट आना

है दिन में बे-कैफ़ क़लबे मुज़तर बहुत ही सब्र आज़मा हैं रातें
तुम्हेँ भी ऐसे मे याद मेरी अगर सताए तो लौट आना

तुझे भी एहसास होगा कैसे शबे जुदाई गुज़र रही है
सँभालने से भी दिल जो तेरा संभल न पाए तो लौट आना

कभी न तू रह सकेगा मेरे बग़ैर ‘बर्क़ी’ मुझे यक़ीं है
ख़याल मेरा जो तेरे दिल से कभी न जाए तो लौट आना


अहमद अली ' बर्की' आज़मी

पलट कर वो कहीं कर दे न तुम पर वार चुटकी में

बदलता रहता है हर दम मिज़ाजे-यार चुटकी में ,
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी में

कहीं ऐसा न हो हो जाए वह बेज़ार चुटकी में
तुम उस से कर रहे हो दिल्लगी बेकार चुटकी में

दिले नादाँ ठहर, अच्छी नहीं यह तेरी बेताबी
नहीं होती है राह-ए-वस्ल यूँ हमवार चुटकी में

अगर चशमे -इनायत हो गई उसकी तो दम भर में
वह रख देगा बदल कर तेरा हाल-ए-ज़ार चुटकी में


अगर मर्ज़ी नहीं उसकी तो तुम कुछ कर नहीं सकते
अगर चाहे तो हो जाएगा बेड़ा पार चुटकी में

बज़ाहिर नर्म दिल है ,वो कभी ऐसा भी होता है
वो हो जाता है अकसर बर-सरे पैकार चुटकी में

कभी भूले से भी करना न तुम उसकी दिल आज़ारी
बदल जाती है उसकी शोख़ी -ए -गुफ़्तार चुटकी में

सँभल कर सब्र का तुम लेना उसके इम्तिहाँ वरना
पलट कर वो कहीं कर दे न तुम पर वार चुटकी में

हमेशा याद रखना वो बहुत हस्सास है 'बर्क़ी'
अगर ख़ुश है तो हो जाएगा वो तैयार चुटकी में


अहमद अली 'बर्क़ी' आज़मी

Wednesday, April 1, 2009

सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे

सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे
गिरे पड़े हुए लफ़ज़ों को मोहतरम कर दे

ग़ुरूर उस पे बहुत सजता है मगर कह दो
इसी में उसका भला है ग़ुरूर कम कर दे

यहाँ लिबास, की क़मीत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे

चमकने वाली है तहरीर मेरी क़िस्मत की
कोई चिराग़ की लौ को ज़रा सा कम कर दे

किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी
ज़मीन तेरी ख़ुदा मोतियों से नम कर दे

बशीर बद्र

यूँ ही बेसबब न फिरा करो

यूँ ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके चुपके पढ़ा करो

कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो

अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जायेगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो

मुझे इश्तहार सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो

कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन-सँवर के कहीं चलूँ, मेरे साथ तुम भी चला करो

ये ख़िज़ा की ज़र्द-सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो

नहीं बेहिजाब वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर नहीं
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो


बशीर बद्र

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
किश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा

बेवक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुमने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा

पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा


बशीर बद्र

Monday, March 16, 2009

सिलसिला ज़ख्म ज़ख्म जारी है.

सिलसिला ज़ख्म ज़ख्म जारी है
ये ज़मी दूर तक हमारी है

मैं बहुत कम किसी से मिलता हूँ
जिससे यारी है उससे यारी है

हम जिसे जी रहे हैं वो लम्हा
हर गुज़िश्ता सदी पे भारी है

मैं तो अब उससे दूर हूँ शायद
जिस इमारत पे संगबारी है

नाव काग़ज़ की छोड़ दी मैंने
अब समन्दर की ज़िम्मेदारी है

फ़लसफ़ा है हयात का मुश्किल
वैसे मज़मून इख्तियारी है

रेत के घर तो बेह गए नज़मी
बारिशों का खुलूस जारी है


'अख्तर नाजमी '

नाखुश इतने नफ़रत कर-कर

नाखुश इतने, नफरत कर कर.
रक्त पीपासा, उर में भर कर.
अपना नया ईश्वर रच कर,
जीना चाहते हैं वह मर कर.

हाथ नहीं हथियार हैं उनके,
मस्तक धड से अलग चले है.
ईच्छा और विवेक से अनबन,
आस्तीन में सांप पले हैं.
काम धर्म का मान लिया है.
जाने कौन किताब को पढ कर.

अपना नया, ईश्वर रच कर.
जीना चाहते, हैं वह मर कर.

खून और चीतकार का जिसने,
अर्थ बदल कर उन्हे बताया.
निर्दोशों को मौत का तौहफा,
दे कर जिसने रब रिझाया.
मां के खून को किया कलंकित,
झूंठे निज गौरव को गढ कर.

अपना नया ईश्वर रच कर.
जीना चाहते हैं वह मर कर.

बचपन की मुस्कान है जीवन,
कांश उन्हें भी कोई बताये.
रास रस उलास है जीवन,
कोई उनको यह समझाये.
क्यों खुद को आहूत कर रहे,
भ्रमित उस संसार में फंसकर.

अपना नया ईश्वर रच कर.
जीना चाहते हैं वह मर कर।


"योगेश समदर्शी "

कुछ दर्द मेरे अपने

कुछ दर्द मेरे अपने
कुछ अश्क पराये भी
कुछ खामोश पीये मैंने
कुछ खुल के बहाये भी

कुछ शोखी हसीनों की
कुछ अंदाज जमाने के
कुछ कौल मेरे टूटे
कुछ वादे निभाये भी

कुछ बातें कह डाली
कुछ किस्से छुपाये भी
कुछ काटी अंधेरों में
कुछ चिराग जलाये भी

कुछ दोस्त मिले मुझको,
कुछ झूठे सौदाई
कुछ याद रहे अब तक
कुछ नाम भुलाये भी

कुछ अरमां बर आये
कुछ उम्मीदें मुर्झाई
कुछ जीत के मैं हारा
कुछ हार सजाई भी

कुछ दर्द मेरे अपने
कुछ अश्क पराये भी
कुछ खामोश पीये मैंने
कुछ खुल के बहाये भी


"मोहिंदर कुमार "

Saturday, February 14, 2009

मेरा इंतज़ार करना

वादा वो मोहब्बत का मैं निभाऊँगा एक दिन
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥
ज़माने से अलग पह्चान है मेरी
दुनियाँ की भीड में खोया नहीं हूँ
जुदाई की रात चाहे लम्बी सही
सुबह के इंतज़ार में सोया नही हूँ
हर पल बस तुमको ही याद किया
आँखें नम हुईं लेकिन रोया नही हूँ
कैसे गुजरे थे ये दिन मैं सुनाऊँगा एक दिन
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥

व्यस्त हूँ ज़िन्दगी की उलझनों में
मत सोचना कि तुमसे प्यार नही है
वादा करके जुबान से मुकर जाऊँ
ऐसे तो मिले मुझे संस्कार नहीं है
फ़ैसला मेरा जमाने ने सुन लिया
तुम बिन ज़िन्दगी स्वीकार नहीं है
मैने तुमको चाहा है तुमको पाऊँगा एक दिन ॥
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥
आज हम और तुम इतने दूर सही
यह तो अपनी किस्मत का लेखा है
हमें मिलने से कोई न रोक पायेगा
मेरे हाथ में तुम्हारे नाम की रेखा है
तुम मंज़िल हो मेरे इस सफ़र की
कितनी बार तुम्हें सपने में देखा है
सपनों को हकीकत में बदल जाऊँगा एक दिन
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥
दिल की हर आरज़ू को अंजाम दूँगा
तुम अधूरी हसरतों का मलाल रख्नना
उदास रहने से झुर्रियाँ पड जाती हैं
अपने हसीन चेहरे का खयाल रखना
ज़िन्दगी छोटी सी है और काम ज्यादा
मेरे लिये बचा कर कुछ साल रख्नना
अपनी ज़िन्दगी तुम पर मैं लुटाऊँगा
एक दिन तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊंगा एक दिन ॥
सच्चे दिल की सदायें कुबूल होती हैं
खुदा को तुम दुआयें तमाम लिखना
दीवानापन अगर हद से गुजरने लगे
अपनी चाहत पर कोई कलाम लिखना
जब दिल मिले हैं तो हम भी मिलेंगे
मेरा नाम जोडकर अपना नाम लिखना
तुमको ही अपनी पह्चान मैं बनाऊँगा एक दिन
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥
वह सवेरे का सूरज जब भी निकलेगा
जुदाई की ये काली रात गुजर जायेगी
उतरेगी समंदर में जब अपनी किश्ती
मंज़िल तक छोडने खुद लहर जायेगी
साथ मिलकर किसी दिन ढूँढ ही लेंगे
ये खुशी हमसे बच कर किधर जायेगी
हँसी तुम्हारे होठों पर मैं सजाऊँगा एक दिन
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥
हमसफ़र बन कर हम जब भी चलेंगे
मेरे हाथों में अपना हाथ थमाना होगा
ज़िन्दगी के तन्हा पथरीले रास्तों पर
मेरे हर कदम से कदम मिलाना होगा
वह दिन आयेगा मुझपे यकीन करना
बाँहों में आस्माँ कदमों में जमाना होगा
जमाने को तुम्हारे आगे मैं झुकाऊँगा एक दिन
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥
बढते हुए कदम अब नहीं रुकने वाले
तीर कब का निकल चुका है कमान से
चाहे जैसा भी हो अंजाम देखा जायेगा
मोहब्बत नहीं डरती किसी इम्तहान से
जमीन वाले बस देखते ही रह जायेंगे
जब माँग लाऊँगा मैं तुम्हे आसमान से
'विजय' तुम्हारी किस्मत में लिख जाऊँगा एक दिन ॥
तुम मेरा इंतज़ार करना मैं आऊँगा एक दिन ॥

'विजय सिंह'

Friday, February 13, 2009

निभाई है यहाँ हमने मुहब्बत भी सलीके से

निभाई है यहाँ हमने मुहव्बत भी सलीके से
दिए जो रंज़ो-ग़म इसने लगाए हमने सीने से

हमेशा ज़िंदगी जी है यहाँ औरों की शर्तों पर
मिले मौका अगर फिर से जिऊँ अपने तरीके से

न की तदबीर ही कोई , न थी तकदीर कुछ जिनकी
सवालों और ख्यालों मे मिले हैं अब वो उलझे से।

जो टूटे शाख से यारो अभी पत्ते हरे हैं वो
यकीं कुछ देर से होगा नही अब दिन वो पहले से

घरों से उबकर अब लोग मैखाने मे आ बैठे
सजी हैं महफिलें देखो यहां कितेने क़रीने से

"ख्याल" अपनी ही करता है कहाँ वो मेरी सुनता है
नज़र आते हैं उसके तो मुझे तेवर ही बदले से


सतपाल 'ख़्याल

अब आग के लिबास को ज्यादा ना दाबिये

अब आग के लिबास को ज्यादा न दाबिए।
सुलगी हुई कपास को ज्यादा न दाबिए।

ऐसा न हो कि उँगलियाँ घायल पड़ी मिलें
चटके हुए गिलास को ज्यादा न दाबिए।

चुभकर कहीं बना ही न दे घाव पाँव में
पैरों तले की घास को ज्यादा न दाबिए।

मुमकिन है खून आपके दामन पे जा लगे
ज़ख़्मों के आस पास यों ज्यादा न दाबिए।

पीने लगे न खून भी आँसू के साथ-साथ
यों आदमी की प्यास को ज्यादा न दाबिए।


डॉ कुँअर बेचैन

Wednesday, February 11, 2009

सूर्य मन्दिर , मोढेरा ( गुजरात)


अहमदाबाद से १०० किमी की दुरी पर मोढेरा में बहुत ही खूबसूरत प्राचीन सूर्य मन्दिर है। इस मन्दिर को ११वी सदी में राजा भीमदेव सोलंकी ने बनवाया था । खँडहर की अवस्था में होने के बावजूद यह मन्दिर बेहद ही खूबसूरत है।

अब यहाँ पर कोई पूजा नही होती है।

यहाँ हर साल जनवरी माह में नर्त्योत्सव होता है। जिसमे भारतवर्ष की मशहूर नार्त्यांग्नाएं भाग लेती हैं।

Saturday, February 7, 2009

तेरा इमोशनल अत्याचार !!!!!!!

बेहद अच्छा गाना है, लीक से हटकर

Friday, February 6, 2009

ये रात , ये तन्हाई

ये रात, ये तन्हाई
ये दिल के धड़कने की आवाज़
ये सन्नाटा
ये डूबते तारों की खामोश ग़ज़ल खवानी
वक़्त की पलकों पर सोती हुई वीरानी
जज़्बात -ऐ - मुहब्बत की
ये आखिरी अंगडाई
बजती हुई हर जानिब
ये मौत की शहनाई
सब तुम को बुलाते हैं
पलभर को तुम आ जाओ
बंद होती मेरी आंखों में
मुहब्बत का
एक ख्वाब सजा जाओ
मीना कुमारी ' नाज़ '

पूछते हो तो सुनो, कैसे बसर होती है

पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है 
 रात खैरात की सदके की सहर होती है 
 साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब 
 दिल ही दुखता है ना अब आस्तीन तर होती है 
 जैसे जागी हुई आंखों में चुभें कांच के ख्वाब 
 रात इस तरह दीवानों की बसर होती है 
 गम ही दुश्मन है मेरा गम ही को दिल ढूंढ़ता है 
 एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है 
 एक मरकज़* की तलाश एक भटकती खुश्बू
 कभी मंजिल कभी तम्हीद* -ऐ -सफर होती है 

  स्व मीना कुमारी *[markaz=focus; tamhiid=prelude/preamble]

Tuesday, February 3, 2009

आपके लिए एक हरयाणवी गीत यहाँ प्रस्तुत है, उम्मीद है आपको पसंद आएगा गीत के अंत में आपकी सुविधा के लिए भावार्थ भी दिया है। ( इसके रचयिता अज्ञात हैं )

अरै मैं बुरी कंगाली धन बिन कीसी रै मरोड़ ?
भोगा, बुरी रै कंगाली, धन बिन कीसी रै मरोड़!
धनवन्त घरां आणके कह जा
निरधन ऊँची-नीची सब सह जा
सर पर बंधा-बंधाया रह जा
माथे पर का रै मोड़ ।
अरै मैं बुरी कंगाली धन बिन कीसी रै मरोड़!
निरधन सारी उमर दुख पावे
भूखा नंग रहके हल बाहवे
भोगा, बिना घी के चूरमा
तेरी रहला कमर तै रै तोड़
अरै मैं बुरी कंगाली धन बिन कीसी रै मरोड़ !


भावार्थ
--'बुरी है ग़रीबी, धन के बिना कैसा नखरा? मैं सब भोग चुका हूँ, गरीबी बुरी बला है । धन के बिना कोई
नखरा नहीं किया जा सकता । धनी ग़रीब के घर आकर, जो चाहता है कहकर चला जाता है । ग़रीब व्यक्ति उसकी हर ऊँची-नीची बात सह जाता है । धन के बिना तो सर पर बंधी पगड़ी का भी कोई मोल नहीं रह जाता । अरे मैं सब झेल चुका हूँ । बहुत बुरी है ये कंगाली । धन के बिना कोई सुख नहीं पाया जा सकता है । ग़रीब व्यक्ति सारी उमर दुख पाता है । वह भूखा-नंगा रह कर हल चलाता है और खेत जोतता है । अरे ओ भोगा, क्या किया तूने ? बिना घी की रोटी का जो चूरमा (चूरा) तूने कपड़े में बांध कर अपनी कमर पर लटका रखा है, वह तेरी कमर का बोझ बनकर उसे तोड़ रहा है । अरे, मैं यह बुरी कंगाली ख़ूब झेल चुका हूँ । पैसे के बिना जीवन में कोई सुख नहीं है ।'

Saturday, January 31, 2009

आल्हा

लागल कचहरी जब आल्हा के बँगला बड़े- बड़े बबुआन
लागल कचहरी उजैनन के बिसैनन के दरबार
नौ सौ नागा नागपूर के नगफेनी बाँध तरवार
बैठल काकन डिल्ली के लोहतमियाँ तीन हजार
मढ़वर तिरौता करमवार है जिन्ह के बैठल कुम्ह चण्डाल
झड़ो उझनिया गुजहनिया है बाबू बैठल गदहियावाल
नाच करावे बँगला में मुरलिधर बेन बजाव
मुरमुर मुरमुर बाजे सरंगी जिन्ह के रुन रुन बाजे सितार
तबला चटके रस बेनन के मुखचंद सितारा लाग
नाचे पतुरिया सिंहल दीप के लौंड़ा नाचे गोआलियरवाल
तोफा नाचे बँगला के बँगला होय परी के नाच
सात मन का कुण्डी दस मन का घुटना लाग
घैला अठारह सबजी बन गैल नौ नौ गोली अफीम
चौदह बत्ती जहरन के आल्हा बत्ती चबावत बाय
पुतली फिर गैल आँखन के अँखिया भैल रकत के धार
चेहरा चमके रजवाड़ा के लड़वैया शेर जवान
अम्बर बेटा है जासर के अपना कटले बीर कटाय
जिन्ह के चलले धरती हीले डपटै गाछ झुराय
ओहि समन्तर रुदल पहुँचल बँगला में पहुँचल जाय
देखल सूरत रुदल के आल्हा मन में करे गुनान
देहिया देखें तोर धूमिल मुहवाँ देखों उदास
कौन सकेला तोर पड़ गैल बाबू कौन ऐसन gaadh
bhed बताब तूँ जियरा के कैसे बूझे प्रान हमार
हाथ जोड़ के रुदल बोलल भैया सुन धरम के बात
पड़ी सकेला है देहन पर बड़का भाइ बात मनाव
पूरब मारलों पुर पाटन में जे दिन सात खण्ड नेपाल
पच्छिम मारलों बदम जहौर दक्खिन बिरिन पहाड़
चार मुलुकवा खोजि ऐलों कतहीं नव जोड़ी मिले बार कुआँर
कनियाँ जामल नैना गढ़ में राजा इन्दरमन के दरबार
बेटी सयानी सम देवा के बर माँगल बाघ जुझार
बड़ि लालसा है जियरा में जो भैया के करौं
बियाह करों बिअहवा सोनवा से
एतना बोली आल्हा सुन गैल आल्हा मन मन करे गुनानजोड़ गदोइ अरजी होय गैल बबुआ रुदल कहना मान हमारजन जा रुदल नैनागढ़ में बबुआ किल्ला तूरे मान के नाहिंबरिया राजा नैना गढ़ के लोहन में बड़ चण्डालबावन दुलहा के बँधले बा साढ़े सात लाख बरियातसमधी बाँधल जब गारत में अगुआ बेड़ी पहिरलन जायभाँट बजनियाँ कुल्हि चहला भैल मँड़वा के बीच मँझारएकहा ढेकहो ढेलफुरवा मुटघिंचवा तीन हजारमारल जेबव् नैनागढ़ में रुदल कहना मान हमारकेऊ बीन नव्बा जग दुनिया में जे सोनवा से करे बियाहजन जा रुदल नैना गढ़ में बबुआ कहना मान हमारप्रतना बोली रुदल सुन गैल रुदल बर के भैल अँगारहाथ जोड़ के रुदल बोलल भेया सुनी बात हमारकादर भैया तूँ कदरैलव् तोहरो हरि गैल ग्यान तोहारधिरिक तोहरा जिनगी के जग में डूब गैल तरवार जेहि दिन जाइब नैना गढ़ में अम्बा जोर चली तरवारटूबर देहिया तूँ मत देखव् झिलमिल गात हमारजेहि दिन जाइब नैना गढ़ में दिन रात चली तरवारएतना बोली आल्हा सुन गैल आल्हा बड़ मोहित होय जायहाथ जोड़ के आल्हा बोलल बाबू सुनव् रुदल बबुआनकेत्त मनौलों बघ रुदल के बाबू कहा नव् मनलव् मोरलरिका रहल ता बर जोरी माने छेला कहा नव् माने मोरजे मन माने बघ रुदल से मन मानल करव् बनायएतना बोली रुदल सुन गैल रुदल बड़ मंड्गन होय जायदे धिरकारीरुदल बोलल भैया सुनीं गरीब नेवाजडूब ना मूइलव् तूँ बड़ भाइ तोहरा जीअल के धिरकारबाइ जनमतव् तूँ चतरा घर बबुआ नित उठ कुटतव् चामजात हमार रजपूतन के जल में जीबन है दिन चारचार दिन के जिनगानी फिर अँधारी रातदैब रुसिहें जिब लिहें आगे का करिहें भगवानजे किछु लिखज नरायन बिध के लिखल मेंट नाहिं जायगज भर धरती घट जैहें प्रक चोट करों दैब से मार
तब तो बेटा जासर के नैं याँ पड़े रुदल बबुआनचल गैल रुदल ओजनी से गढ़ पिअरी में गैल बनायलागल कचहरी है डेबा का जहवाँ रुदल पहुँचे जायसोना पलँगरी बिछवाइ सोना के मोंढा देल धरवायसात गलैचा के उपर माँ रुदल के देल बैठायहाथ जोड़ के रुदल बोलल बाबू डेबा ब्राहमन के बलि जाओंलागल लड़ाइ नैना गढ़ में डेबा चलीं हमरा साथएतना बोली डेबा सुन गैल डेबा बड़ मोहित होई जायजोड़ गदोइ डेबा बोलल बाबू सुनीं रुदल बबुआनजहवाँ पसीना है रुदल के तहवाँ लोधिन गिरे हमारडेबा डेबा के ललकारे डेबा सुन बात हमारबाँधल घोड़ा तबल खास में घोड़ा ए दिन लावव् हमरा पासचल गैल डेबा गढ़ पिअरी से तबल खास में पहुँचल जायबावन कोतल के बाँधल है बीच में बाँधल बेनुलिया घोड़ओहि समंदर डेबा पहुँचल घोड़ा कन पहुँचल जायजोइ गदोइ डेबा बोलल घोड़ा सुनव् बात हमारभैल बोलाहट बघ रुदल केलागल लड़ाइ नैना गढ़ में घोड़ा चलव् हमरा साथएतना बोली घोड़ा सुन गैल घोड़ा के भैल अँगारबोलल घोड़ा जब डेबा से बाबू डेबा के बलि जाओंबज् पड़ गैल आल्हा पर ओ पर गिरे गजब के धारजब से ऐलों इन्द्रासन से तब से बिदत भैल हमारपिल्लू बियायल बा खूरन में ढालन में झाला लागमुरचा लागि गैल तरवारन में जग में डूब गैल तरवारआल्हा लड़ैया कबहीं नव् देखल जग में जीवन में दिन चारएतना बोली डेबा सुन गैल डेबा खुसी मंगन होय जायखोलै अगाड़ी खोलै पिछाड़ी गरदनियाँ देल खोलायजीन जगमियाँ धर खोले सोनन के खोलै लगामपीठ ठोंक दे जब घोड़ा के घोड़ा सदा रहव् कलियानचलल जे राजा डेबा ब्राहमन घुड़ बेनुल चलल बनायघड़ी अढ़ाई का अन्तर में रुदल कन पहुँचल जायदेखल सूरत घुड़ बेनुल के रुदल बड़ मंगन होय जायदेहिया पोंछे जब घोड़ बेनुल के रुदल हँस के कैल जनाबहाथ जोड़ के रुदल बोलल घोड़ा सुन ले बात हमारतब ललकारें रुदल बोलल डेबा मंत्री के बलि जाओघोड़ा बेनुलिया तैयारी कर जलदी बोल करव् परमानघोड़ा पलाने डेबा ब्राहमन रेसम के भिड़े पलानचोटी गुहावे सोनन से चाँदी खील देल मढ़वायपूँछ मढ़ावल हीरा से महराजा सुनीं मोर बातसात लाख के हैकलवा है घोड़ा के देल पेन्हायएतो पोसाक पड़ल घोड़ा के रुदल के सुनी हवालबावन गज के धोती बाँधे खरुअन के चढ़ल लँगोट अस्सी मन के ढलिया है बगल में लेल लगायतीस मन के जब नेजा है हाथन में लेल लगायबाँक दुआल पड़ल पंजड़ तक तर पल्ला पड़ल तरवारछप्पन छूरी नौ भाला कम्मर में ढुले बनायबूता बनाती गोड़ सोभै जिन्ह का गूँज मोंछ फहरायबावन असरफी के गल माला हाथन में लेल लगायभूजे डण्ड पर तिलक बिराजे परतापी रुदल बीरफाँद बछेड़ा पर चढ़ गैल घोड़ा पर बैल असवारघोड़ा बेनुलिया पर बघ रुदल घोड़ा हन्सा पर डेबा बीरदुइए घोड़ा दुइए राजा नैना गढ़ चलल बनायमारल चाबुक है घोड़ा के घोड़ा जिमि नव् डारे पाँवउड़ गैल घोड़ा सरगे चल गैल घोड़ा चाल बरोबर जायरिमझिम रिमझिम घोड़ा नाचे जैसे नाचे जंगल के मोररात दिन का चलला माँ नैना बढ़ लेल तकायदेखि फुलवारी सोनवा के रुदल बड़ मगन होय जायडेबा डेबा के गोहरावे डेबा सुनव् बात हमारडेरा गिरावव् फुलवारी में प्रक निंदिया लेब गँवारबड़ा दिब्य के फुलवारी है जहवाँ डेरा देल गिरायघुमि घुमि देखे फुलवारी के रुदल बड़ मंगन होय जायदेखल अखाड़ा इन्दरमन के रुदल बड़ मंगन होय जायकैंड़ा लागल है देहन माँ दुइ डण्ड खेलौं बनाय बावन गज के धोती बाँधे उलटी चरना लेल लगायबावन कोठी के कोठवार देहन में लेल लगायपलहथ रोपल अखड़ा में रुदल डण्ड कैल नौ लाखमूँदल भाँजे मन बाइस के साढ़े सत्तर मन के डीलतीस मन के नेजम है रुदल तूर कैल मैदानताल जे मारे फुलवारी में महराजा सुनीं मोर बातफुलवा झरि गेल फुलवारी के बन में गाछ गिरल भहरायजल के मछरी बरही होय गैल डाँटें कान बहिर होय जायबसहा चढि सिब जी भगले देबी रोए मोती के लोरकहाँ के राजा एत बरिया है मोर फुलवारी कैल उजार सुने पैहें रजा इन्दरमन हमरो चमड़ी लिहें खिंचायसतौ बहिनियाँ देबी इन्द्रासन सें चलली बनायघड़ी अढ़ाइ का अन्तर में पहुँचली जायरुदल सूरत फुलवारी में जहवाँ देबी जुमली बनायदेखल सूरत रुदल के देबी मन मन करे गुनानबड़ा सूरत के ई लरिका है जिन्ह के नैनन बरै इँजोरपड़िहें समना इन्दरमन का इन्ह के काट करी मैदाननींद टूट गैल बघ रुदल के रुदल चितवै चारों ओरहाथ जोड़ के रुदल बोलल देबी सुनीं बात हमारबावन छागर के भोग देइ भैंसा पूर पचासभोग चढ़ाइब अदमी के देबी अरजी मानव् हमारएतनी बोली देबी सुन गैली देबी जरि के भैली अँगारतब मुँह देबी बोलली बबुआ सुनीं रुदल महराजबेर बेर बरजों बघ रुदल के लरिका कहल नव् मनलव् मोरमरिया राजा नैना गढ़ के नैंनाँ पड़े इन्दरमन बीरबावन गुरगुज के किल्ला है जिन्ह के तिरपन लाख बजारबावन थाना नैना गढ़ में जिन्ह के रकबा सरग पतालबावन दुलहा के सिर मौरी दहवौलक गुरैया घाटमारल जैबव् बाबू रुदल नाहक जैहें प्रान तोहारपिण्डा पानी के ना बचबव् हो जैबव् बन्स उजारएतनी बोली रुदल सुन गैल तरवा से लहरल आगपकड़ल झोंटा है देबी के धरतो पर देल गिरायआँखि सनीचर है रुदल के बाबू देखत काल समान
दूचर थप्पर दूचर मुक्का देबी के देल लगायलै के दाबल ठेहुना तर देबी राम राम चिचियायरोए देबी फुलवारी मैं रुदल जियरा छोड़व् हमारभेंट कराइब हम सोनवा सेंएतनी बोली रुदल सुन के रुदल बड़ मंगन होय जायप्रान छोड़ि देल जब देबी के देबी जीव ले चलल परायभागल भागल देबी चल गैल इन्द्रासन में पहुँचल जायपाँचों पण्डु इन्द्रासन में जहवाँ देबी गैल बनायपड़ल नजरिया है पण्डो के देबी पर पड़ गैलि दिष्टरोए पण्डो इन्द्रासन में देबी सुनीं बात हमारतीन मुलुक के तूँ मालिक देबी काहे रोवव् जार बेजारतब ललकारे देबी बोली पण्डो सुनीं बात हमारआइल बेटा जासर के बघ रुदल नाम धरायसादी माँगे सानवा के वरिअरिया माँगे बियाहजिब ना बाँचल मोर देबी के पण्डो जान बचाई मोरएतनी बोली पण्डो सुन गैल पण्डो रोए मोती के लोरथर- थर काँपें कुल्हि पण्डो देबी सुनीं बात हमारबरिया राजा बघ रुदल लोहन में बड़ चण्डालभार्गल देबी इंद्रासन सें अब ना छूटल प्रान हमारभागल देबी इन्द्रासन सें नैना गढ़ में गैल बनायबावन केवाड़ा का अण्डल में जेह में सोनवा सूति बनायलग चरपाइ चानिन के सोनन के पटरी लागचारों लौंड़ी चारों बगल में बीचे सानवा सूति बनायपान खवसिया पान लगावे केऊ हाथ जोड़ भैल ठाढ़केऊ तो लौंड़ी जुड़वा खोले केऊ पानी लेहले बायओहि समन्तर देबी पहुँचल सोनवा कन पहुँचल बायलै सपनावे रानी के सोनवा सुनीं बात हमारआइल राजा बघ रुदल फुलवारी में डेरा गिरौले बायमाँगै बिअहवा जब सोनवा के बरिअरिया माँगैं बियाह जिब ना बाँचल मोर देवी के सोनवा जान बचाई मोरनाम रुदल के सुन के सोनवा बड़ मगन होय जायलौंड़ी लोंड़ी के ललकारे मुँगिया लौंड़ी बात मनावरात सपनवाँ में सिब बाबा के सिब पूजन चलि बनायजौन झँपोला मोर गहना के कपड़ा के लावव् उठायजौन झँपोला है गहना के कपड़ा के ले आवव् उठायखुलल पेठारा कपड़ा के जिन्ह के रास देल लगवायपेनहल घँघरा पच्छिम के मखमल के गोट चढ़ायचोलिया पेन्हे मुसरुफ के जेह में बावन बंद लगायपोरे पोरे अँगुठी पड़ गैल सारे चुरियन के झंझकारसोभे नगीना कनगुरिया में जिन्ह के हीरा चमके दाँतसात लाख के मँगटीका है लिलार में लेली लगायजूड़ा खुल गैल पीठन पर जैसे लोटे करियवा नागकाढ़ दरपनी मुँह देखे सोनवा मने मने करे गुनानमन जा भैया रजा इन्दरमन घरे बहिनी रखे कुँआरवैस हमार बित गैले नैनागढ़ में रहलीं बार कुँआरआग लगाइब एह सूरत में नेना सैव लीं नार कुँआरनिकलल डोलवा है सोनवा के सिब का पूजन चलली बनायपड़लि नजरिया इंदरमन के से दिन सुनों तिलंगी बातकहवाँ के राजा एत बरिया है बाबू डोला फँदौले जायसिर काट दे ओह राजा के कूर खेत माँ देओ गिरायलड्गे तेगा लेल इंदरमन बाबू कूदल बवन्तर हाथ पड़लि नजरिया है सोनवा के जिन्ह के अंत कोह जरि जायनाता नव् राखब एह भैया केजेतना जे गहना बा देहन के डोला में देल धरायबावन बज के धोती बाँधे सोनवा कूद गैल ब्यालिस हाथपड़लं लड़ाइ बहिनी भैया बाबू पड़ल कचौंधी मार तड़तड़ तड़तड़ तेगा बोले जिन्ह के खटर खटर तरवार सनसन सनसन गोली उड़ गैल जिन्ह जिमी नव् डाले पाँवसात दिन जब लड़ते बीतल बीत गैल सतासी रातसात हाथ जब धरती गहिरा पड़ गैल जबहुँ नव् सोनवा हटे बनायघैंचल तेगा रजा इंदरमन जे दिन लेल अली के नामजौं तक मारे ओह सोनवा के जूड़ा पर लेल बचायदोसर तेगा हन मारे कँगना पर लेल बचारतेसर तेगा के मारत में सोनवा आँचर पर लेल बचायकूदल बहुरिया ओजनी से कूदल बवन्तर हाथपकड़ल पहुँचा इंदरमन के धरती में देल गिरायलै के दाबल ठेहुना तर राजा राम राम चिचियायपड़ल नजरिया समदेवा के समदेव रोवे जाय बेजारहाय हाय के समदेव धर बेटी सोनवा बात मनावपहले काट पिता का पाछे काट भैया के सिरएतनी बोली सोनवा सुन गैल रानी बड़ मोहित हाय जायजान छोड़ देल इंदरमन के जब सोनवा देल जवाब केतना मनौलीं ए भैया के भैया कहा नव् मनलव् मोररात सपनवाँ सिब वाबा केएतनी बोली सुनल इंदरमन राजा के के भैल अँगारसोत खनाबों गंगा जी के सिब के चकर देब मँगवायफूल मँगाइब फुलवारी से घरहीं पूजा करु बनायतिरिया चरित्तर केऊ ना जाने बात देल दोहरायकरे हिनाइ बघ रुदल केऊ तो निकसुआ है सोंढ़ही के राजा झगरु देल निकालसेरहा चाकर पर मालिक के से सोनवा से कैसे करै बियाहपाँचो भौजी है सोनवा के संगन में देल लगायमुँगिया लौंड़ी के ललकारे लौंड़ी कहना मान हमारजैसन देखिहव् सिब मंदिर में तुरिते खबर दिहव् भेजवायमूरत देखे सिब बाबा के सोनवा मन मन करे गुनानलौंड़ी लौंड़ी के ललकारे मुँगिया लौंड़ी के बलि जाओंफूल ओराइल मोर डाली के फुलवारी में फूल ले आ वह जायएतनी बोली लौंड़ी सुन के लौंड़ी बड़ मंगन होय जायसोनक चंपा ले हाथन माँ फुलवारी में जेमल बनायबैठल राजा डेबा ब्राहमन जहवाँ लौंड़ी गेल बनायकड़खा बोली लौंड़ी बोलल बाबू सुनीं रजा मोर बातकहाँ के राजा चलि आइल फुलवारी में डेरा देल गिरायकौड़ी लागे फुलवारी के मोर कोड़ी दे चुकायतब ललकारे डेबा बोलल मुँगिया लौंड़ी के बलि जाओंहम तो राजा लोहगाँ के दुनियाँ सिंघ नाम हमारनेंवता ऐली समदेवा के उन्ह के नेंतवा पुरावन आय
एतनी बोली जब सुन गैले लौंड़ी के भैल अँगारकरे हिनाइ बघ रुदल केसेरहा चाकर पर मालिक के रुदल रोटी बिरानी खायकत बड़ सोखी बघ रुदल के जे सोनवा से करे खाय बियाहजरल करेजा है बघ रुदल के तरवा से बरे अँगारलौंड़ी हो के अतर दे अब का सोखी रहा हमारछड़पल राजा है बघ रुदल लौंड़ी कन पहुँचल जायपकड़ल पहुँचा लौंड़ी के धरती में देल गिरायअँचरा फाड़े जब लौंड़ी के जिन्ह के बंद तोड़े अनमोलहुरमत लूटे ओहि लौंड़ी के लौंड़ी रामराम चिचियायभागल लौंड़ी हैं सोनवा के फुलवारी से गैल परायबठली सोनवा सिब मंदिर में जहवाँ लौंड़ी गैल बनायबोले सोनवा लौंड़ी से लौंड़ी के बलि जाओंकेह से मिलल अब तूँ रहलू एतना देरी कैलू बनायतब ललकारे लौंड़ी बोलल रानी सोनवा के बलि जाओदेवर आइल तोर बघ रुदल फुलवारी में जुमल बनायजिव ना बाँचल लौंड़ी के सोनवा,जान बचावव् हमारनाम रुदल के सुन गैले सोनवा बड़ मंड्गन होय जायजे बर हिछलीं सिब मंदिर में से बर माँगन भेल हमारएतो बारता है सोनवा के रुदल के सुनीं हवालघोड़ा बेनुलिया पर बघ रुदल घोड़ा हन्सा पर डेबा बीरघोड़ा उड़ावल बघ रुदल सिब मंदिर में पहुँचल जायघोड़ा बाँध दे सिब फाटक में रुदल सिब मंदिर में गैल समायपड़लि नजरिया है सोनवा के रुदल पड़ गैल दीठभागल सोनवा अण्डल खिरकी पर पहुँचल जायसोने पलंगिया बिछवौली सोने के मढ़वा देल बिछवायसात गलैचा के उपर रुदल के देल बैठायहाथ जोड़ के सोनवा बोलल बबुआ रुदल के बलि जाओकहवाँ बेटी ऐसन जामल जेकरा पर बँधलव् फाँड़ बोले राजा बघ रुदल भौजी सोनवा के बलि जाओंबारह वरिसवा बित गैल भैया रह गैल बार कुँआरकिला तूड़ दों नैना गढ़ के सोनवा के करों बियाहएतनी बोली रानी सोनवा सुन गैल सोनवा बड़ मंड्गन होय जायभुखल सिपाही मोर देवर है इन्ह के भोजन देब बनायदूध मँगौली गैया के खोआ खाँड़ देल बनवायजेंइ लव् जेंइ लव् बाबू रुदल एहि जीबन के आसकड़खा बोली रुदल बोलल भौजी सोनवा अरजी मान हमारकिरिया खैलीं मोहबा गढ़ में अब ना अन गराहों पानपानी पीयो मद पीयों भौजी अन गौ के माँसतब ललकार सोनवा बोलल मुँगिया लौंड़ी के बलि जाओंफगुआ खेलावह मोर देवर के इन्ह के फगुआ देह खेलायघौरै अबिरवा सिब मंदिर मेंकेऊ तो मारे हुतका से केऊ रुदल के मैसे गालभरल घैलवा है काँदो के देहन पर देल गिरायधोती भीं जल लरमी के पटुका भींजल बदामी वालमोंती चूर के डुपटा है कीचर में गैल लोटायबोले राजा बघ रुदल बाबू डेबा सुनी बात हमाररण्डी के चाकर हम ना लागीं तिरिया में रहों लुभायभैं तो चाकर लोहा के सीता राम करे सो होयबीड़ा मँगावल पनवाँ के भर भर सीसा देल पिलायपढि पढि मारे लौंड़ी के टिकुली टूक टूक उड़ जायभागल लौंड़ी है सोनवा के लौंड़ी जीव ले गैल परायलागल कचहरी इंदरमन के बँगला बड़े- बड़े बबुआनओहि समन्तर लौंड़ी पहुँचल इंदरमन अरजी मान हमारआइल रजा है बघ रुदल के डोला घिरावल बायमाँग बिअहवा सोनवा के बरियारी से माँगै बियाहहै किछू बूता जाँघन में सोनवा के लावव् छोड़ावमन मन झड़खे रजा इंदरमन बाबू मन मन करे गुनानबेर बेर बरजों सोनवा के बहिनी कहल नव् मानल मोरपड़ गैल बीड़ा जाजिम पर बीड़ा पड़ल नौ लाखहे केऊ रजा लड़वैया रुदल पर बीड़ा खाय चौहड़ काँपे लड़वेया के जिन्ह के हिले बतीसो दाँतकेकर जियरा है भारी रुदल से जान दियावे जायबीड़ा उठावल जब लहरा सिंड्घ कल्ला तर देल दबायमारु डंका बजवावे लकड़ी बोले जुझाम जुझामएको एका दल बटुरल जिन्ह के दल बावन नवे हजारबूढ़ बियाउर के गनती नाहिं जब हाथ के गनती नाहिंबावन मकुना के खोलवाइन रजा सोरह सै दन्तारनब्वे सै हाथी के दल में ड़ड़ उपरे नाग डम्बर उपरे मेंड़रायचलल परवतिया परबत के लाकट बाँध चले तरवारचलल बँगाली बंगाला के लोहन में बड़ चण्डालचलल मरहट्टा दखिन के पक्का नौ नौ मन के गोला खायनौ सौ तोप चलल सरकारी मँगनी जोते तेरह हजारबावन गाड़ी पथरी लादल तिरपन गाड़ी बरुदबत्तिस गाड़ी सीसा जद गैल जिन्ह के लंगे लदल तरवारएक रुदेला एक डेबा पर नब्बे लाख असवारबावन कोस के गिरदा में सगरे डिगरी देल पिवायसौ सौ रुपया के दरमाहा हम से अबहीं लव् चुकायलड़े के बोरिया भागे नौ नौ मन के बेड़ी देओं भरवायबोगुल फूँकल पलटन में बीगुल बाजा देल बजायनिकलल पलटन लहरा के बाबू मेघ झरा झर लागझाड़ बरुदन के लड़वैया साढ़े साठ लाख असवारचलल जे पलटन है लहरा के सिब मंदिर के लेल तकायबावन दुआरी के सिब मंदिर बावनों पर तोप देल धरवायरुदल रुदल घिराइल सिव मंदिर माँजरल करेजा है रुदल के घोड़ा पर फाँद भेल असवारताल जो मारे सिब मंदिर में बावनों मंदिर बिरल भहरायबोलल राजा लहरा सिंह रुदल कहना मानव् हमारडेरा फेर दव् अब एजनी से तोहर महाकाल कट जायनाहिं मानल बघ रुदल बाबू सूनीं धरम के बातबातन बातन में झगड़ा भैल बातन बढ़ल राड़बातक झगड़ा अब के मेटे झड़ चले लागत तरवारतड़तड़ तड़तड़ लेगा बोले जिन्ह के खटर खटर तरवार सनसन सनसन गोली उड़ गैल दुइ दल कान दिलह नाहिं जायझाड़ बरुदन के लड़वैया सै साठ गिरल असवारजैसे बढ़इ बन के कतरे तैसे कूदि काटत बाय
आधा गंगा जल बहि गैल आधा बहल रकत के धारऐदल ऊपर पैदल गिर गैल असवार ऊपर असवारढलिया बहि बहि कछुआ होय गैल तरुअरिया भैल धरियारछूरि कटारी सिंधरी होय गैल धै धै तिलंगा खायनब्बे हजारन के पलटन में दसे तिलंगा बाँचल बायकिरिया धरावल जब लहरा सिंह रुदल जियरा छाड़व् हमारनैंयाँ लेब बघ रुदल केएतनी बोली बघ रुदल सुन गैल रुदल बड़ मंड्गन होय जायफिर के चलि भेल बघ रुदल लहरा दोसर कैल सरेखखैंचल तेगा जब लहरा सिंह बाबू लिहल अली के नाम जौं तक मारल बघ रुदल के देबी झट के लिहल बचायबरल करेजा बघ रुदल के रुदल कूदल बवन्तर हाथजौं तक मारल लहरा के भुँइयाँ लोथ फहरायभागल फौदिया जब लहरा के जब नैना गढ़ गैल परायलागल कचहरी इंदरमन के जहाँ तिलंगा पहुँचल जायबोलै तिलंगा लहरा वाला राजा इंदरमन जान बचाई मोरएतनी बोली सुनल इंदरमन बाबू मन में करे गुनान पड़ गलै बीड़ा इंदरमन के राजा इंदरमन बीड़ा लेल उठायहाथी मँगावल भौंरानंद जिन्ह के नौं मन भाँग पिलायदसे तिलंगा ले साथन में सिब मंदिर पहुँचल जायघड़ी पलकवा का चलला में सिब मंदिर पहुँचल जायबाँधल घोड़ा रुदल के पलटन पर पड़ गैल दीठघीचै दोहाइ जब देबी के देबी प्रान बचावव् मोरआइल देबी जंगल के बनस्पती देबी पहुँचल आयघोड़ा खोल देल बघ रुदल के घोड़ा उड़ के लागल अकासरुदल सूतल सिब मंदिर में जहवाँ घोड़ा पहुँचल बायमारे टापन के रोनन से रुदल के देल उठायबोलल घोड़ा रुदल के बाबू पलटन इंदरमन के पहुँचल आयफाँद बछेड़ा पर चढि गैल पलअन में पहुँचल बायबलो कुबेला अब ना चीन्हे जाते जोड़ देल तरवारपड़ल लड़ाइ इंदरमन में रुदल से पड़ गैल मारऐसी लड़ाई सिब मंदिर में अब ना चीन्हे आपन परायगनगन गनगन चकर बान बोले जिन्हके बलबल बोले ऊँट सनसन सनसन गोली बरसे दुइ दल कान दिहल नाहिं जायदसो तिरंगा इंदरमन के रुदल काट कैल मैदानगोस्सा जोर भैल इंदरमन खींच लेल तरवारजौं तक मारल बघ रुदल के अस्सी मन के ढालन पर लेल बचायढलिया कट के बघ रुदल के गद्दी रहल मरद के पासबाँह टूट गैल रुदल के बाबू टूटल पं के हाड़नाल टूट गैल घोड़ा के गिरल बहादूर घोड़ा सेधरती पर गिरल राम राम चिचियायपड़ल नजरिया है देवी रुदल पर पड़ गैल दीठ आइल देवी इंद्रासन के रुदल कन पहुँचल बायइमिरित फाहा दे रुदल के घट में गैल समायतारु चाटे रुदल के रुदल उठे चिहाय चिहायप्रान बचावे देबी बघ रुदल के रुदल जीव ले गैल परायभागल भागल चल गैले मोहबा में गैल परायएत्तो बारता बा रुदल के आल्हा के सुनीं हवालकेत्ता मनौलीं बघ रुदल के लरिका कहल नव् मानल मोरबावन कोस के गिरदा में बघ रुदल डिगरी देल पिटवायलिखल पाँती बघ रुदल तिलरी में देल पठायतेली बनियाँ चलल तिलरी के लोहन में आफत कालपाँती भेजवो नरबर गढ़ राजा मेदनी सिंह के दरबारचलल जे राजा बा मेदनी सिंह मोहबा में पहुँचल जायआइल राजा मकरन्ना गढ़ मोरंग के राज पहुँचल वायचलल जे राजा बा सिलहट के भूँमन सिंह नाम धरायआइ राजा डिल्ली के सुरजन सिंह बुढ़वा सैयद बन्नारस के नौं नौ पूत अठारह नातओनेहल बादल के थमवैया लोहन में बड़ चण्डालमियाँ मेहदी है काबुल के हाथ पर खाना खायउड़ उड़ लड़िहें सरगे में जिन्ह के लोथ परी जै खायचलल जे राजा बा लाखन सिंह लाखन लाख घोड़े असवारनौ मन लोहा नौमनिया के सवा सौ मन के सानउन्ह के मुरचा अब का बरनौ सौ बीरान में सरदारआइल राजा बा सिलहट के भूँमन सिंह नाम धरायजेत्ता जे राजा बा लड़वैया रुदल तुरत लेल बोलायजेत्ता जे बा लड़वैया जिन्ह के सवा लाख असवारएत्तो बारता बा राजा के रुदल के सुनीं हवालबीड़ा पड़ गैल बघ रुदल के रुदल बीड़ा लेल उठायमारु डंका बजवावे लकड़ी बोले कड़ाम कड़ामजलदी आल्हा के बोलवावल भाइ चलव् हमरा साथ करों बिअहवा सोनवा के दिन रात चले तलवारगड्गन धोबी दुरगौली के बावन गदहा ढुले दुआरमुड्गर लाद देल गदहा पर लड़वयौ आफत कालदानी कोइरी बबुरी बन के सिहिंन लाख घोड़े असवारचलल जे पलटन बघ रुदल के जिन्ह के तीन लाख असवाररातिक दिनवाँ का चलला में धावा पर पहुँचल बायडेरा गिरावे दुरगौली में डेरा गिरौले बायजोड़ गदोइ रुदल बोलल भैया सुनीं आल्हा के देल बैठायनौ सौ सिपाही के पहरा बा आल्हा के देल बैठायरुदल चल गैल इंद्रासन में अम्बर सेंदुर किन के गैल बनायएत्तो बारता बा रुदल के नैना गढ़ के सुनीं हवालभँटवा चुँगला बा नैना के राजा इंदरमन के गैल दरबाररुदल के भाइ अल्हगं है दुरगौली में डेरा गिरौले बायतीन लाख पलटन साथन में बा आल्हा के तैयारी बायहाथ जोड़ के भँटना बोलल बाबू इंदरमन के बलि जाओंहुकुम जे पाऊँ इंदरमन के आल्हा के लेतीं बोलायएतनी बोली सुनल इंदरमन राजा बड़ मड्गन होय जायजेह दिन लैबव् आल्हा के तेह दिन आधा राज नैना के देब बटवायचलल जे भँटवा बा नैना गढ़ से दुरगौली में पहुँचल बायहाथ जोड़ के भँटवा बोलल बाबू आल्हा सुनीं महराजतेगा नव् चलिहें नैना गढ़ में धरम दुआरे होई बियाह हाथ जोड़ के आल्हा बोलल भँअवा सुनव् धरम के बानहम नव् जाइब नैना गढ़ में बिदत होई हमारकिरिया धरावे भँटवा है बाबू सुनीं आल्हा बबूआनजे छल करिहें राजा से जिन्ह के खोज मंगा जी खाय
चलल पलकिया जब आल्हा के नैनागढ़ चलल बनायघड़ी अढ़ाई के अंतर में नैनागढ़ पहुँचल जायनौ से कहंरा साथे चल गैल नैना गढ़ पहुँचल जायजवना किल्ला में बैठल इंदरमन तहवां आल्हा गैल बनायछरपल राजा इंदरमन आल्हा कन गैल बनायपकड़ल पहुँचा आल्हा के धरती में देल गिरायबावन पाँती मुसुक चढ़ावे आखा में देल कसायलै चढ़ावल बजड़ा पर बात भैया छोटक के बलि जाओंलै डुबावव् आल्हा के गंगा दव् डुबायसवा लाख पलटन तैयारी होय गेल छोटक के गंगा तीर पहुँचल बायलै डुबावत बा गंगा में आल्हा के डुबावत बायअम्बर बैटा जासर के आल्हा नव् डूबे बनायरुदल आइल इंद्रासन से डेरा पर पहुँचल बायरोय कहँरिया दुरगौली में बाबू रुदल बात बनावलै डुबावत बा आल्हा के गंगा में डुबावत बायफाँद बछेड़ा पर चढ़ गल गंगा तीर पहुँचल बायपड़ल लड़ाई है छोटक सेतड़तड़ तड़तड़ तेगा बोला उन्ह के खटर खटर तरवारजै से छेरियन में हुँड्डा पर वैसे पलटन में पड़ल रुदल बबुआनजिन्ह के टॅगरी- धै के बीगे से त. चूरचूर हाये जायमस्तक भरे हाथी के जिन्ह के डोंगा चलल बहायथापड़ भोर ऊँटन के चारु सुँग चित्त होय जायसवा लाख पलटन कर गल छोटक के जौं तक मारे छोटक के सिरवा दुइ खण्ड होय जायभागल तिलंगा छोटक के राजा इंदरमन के दरबारकठिन लड़ंका बा कघ रुदल सभ के काट केल मैदानएत्ता बारता इंदरमन के रुदल के सुनौं हवाललैं उतारल बजड़ा से धरती में देल धरायआखा खोल के रुदल देखे छाती मारे ब के हाथलै चढ़ावल पलकी पर दुरगौली में गैल बनायएत्तो बारता बा आल्हा के इंदरमन के सुनीं हवालबीड़ा पड़ गैल इंदरमन के राजा इंदरमन बीड़ा लेल उठायमारु बाजा बजवावे बाजा बोले जुझाम जुझाम एकी एका दल बटुरे दल बावन नब्बे हजारबावन मकुना खोलवाइन एकदंता तीन हजारनौ सौ तोप चले सरकारी मँगनी जोते तीन हजारबरह फैर के तोप मँगाइन गोला से देल भरायआठ फैर के तोप मँगाइन छूरी से देल भरायकिरिया पड़ि गैल रजवाड़न में बाबू जीअल के धिरकारउन्ह के काट करों खरिहानचलल जे पलटन इंदरमन के सिब मंदिर पर पहुँचल जायतोप सलामी दगवावल मारु डंका देल बजवायखबर पहुँचल बा रुदल कन भैया आल्हा सुनीं मोर बातकरव् तैयार पलटन के सिब मंदिर पर चलीं बनायनिकलल पलटन रुदल के सिब मंदिर पर पहुँचल बायबोलल राजा इंदरमन बाबू रुदल सुनीं मोर बातडेरा फेर दव् एजनी से तोहर महा काल कट जायतब ललकारे रुदल बोलल रजा इंदरमन के बलि जाओंकर दव् बिअहवा सोनवा के काहे बढ़ैबव् राड़पड़ल लड़ाइ है पलटन में झर चले लागल तरवारऐदल ऊपर पैदल गिर गैल असवार ऊपर असवारभुँइयाँ पैदल के नव् मारे नाहिं घोड़ा असवारजेत्ती महावत हाथी पर सभ के सिर देल दुखरायछवे महीना लड़ते बीतल अब ना हठे इंदरमन बीरचलल ले राजा बघ रुदल सोनवा कन गैल बनायमुदई बहिनी मोर पहुँच वायघैचल तेगा राजा इंदरमन सोनवा पर देल चलायजौं तक मारल इंदरमन के सिरवा दुइ खण्ड होय जायलोधिन गिरे इंदरमन के सोनवा जीव जे गैल परायतब ललकारे रुदल बोलल भैया सुनीं हमार एक बातपलटन चल गैल बघ रुदल के गंगा तीर पहुँचल बायडुबकी मारे गंगा में जेह दिन गंगा तीर पहुँचल बायडुबकी मारे गंगा में जेह दिन गंगा करे असनानचलल जे पलटन फिर ओजनी से नेना गढ़ पहुँचल बायहाथ जोड़ के रुदल बोलल बाबू समदेवा के बलि जाओंकर दव् बिअहवा सोनवा के काहे बड़ैबव् राड़ एतनी बोली समदेवा सुन के राजा बड़ मंगन होय जायतूँ सोनवा के कर जव् बिअहवा काहे बैढ़बव् राड़एतनी बोली रुदल सुन के बड़ मंगन होय जायसुनीं बारता समदेवा केकाँचे महुअवा कटवावे छवे हरिअरी बाँसतेगा के माँड़ो छ्ँवौले बानौ सै पण्डित के बोलावाल मँड़वा में देल बैठायसोना के कलसा बैठौले बा मँड़वा में पीठ काठ के पीढ़ा बनावे मँडवा के बीच मझारजाँघ काट के हरिस बनावे मँड़वा के बीच मझारमूँड़ी काट के दिया बरावे मँड़वा के बीच मझारपलटन चल गैल रुदल के मँडवा में गैल समायबैठल दादा है सोनवा के मँड़वा में बैठल बायबूढ़ा मदन सिंह नाम धरायप्रक बेर गरजे मँडवा में जिन्ह के दलके दसो दुआरबोलल राजा बूढ़ा मदन सिंह सारे रुदल सुनव् बात हमारकत बड़ सेखी है बघ रुदल के मोर नतनी से करै बियाहपड़ल लड़ाइ है मँड़वा में जहवाँ पड़ल कचौंधी मार नौ मन बुकवा उड़ मँड़वा में जहवाँ पड़ल चैलिअन मारईटाँ बरसत बा मँड़वा में रुदल मन में करे गुनानआधा पलटन कट गैल बघ रुदल के सोना के कलसा बूड़ल माँड़ों मेंधींचे दोहाइ जब देबी के देबी माँता लागू सहायघैंचल तेगा है बघ रुदल बूढ़ा मदन सिंह के मारल बनायसिरवा कट गैल बूढ़ा मदन सिंह के हाथ जोड़ के समदेवा बोलल बबुआ रुदल के बलि जाओंकर लव् बिअहवा तूँ सोनवा के नौ सै पण्डित लेल बोलायअधी रात के अम्मल में दुलहा के लेल बोलायलै बैठावल जब सोनवा के आल्हा के करै बियाह कैल बिअहवा ओह सोनवा के बरिअरिया सादी कैल बनायनौ सै कैदी बाँधल ओहि माँड़ों में सभ के बेड़ी देल कटवाय
जुग जुग जीअ बाबू रुदल तोहर अमर बजे तरवारडोला निकालल जब सोनवा के मोहबा के लेल तकायरातिक दिनवाँ का चलला में मोहबा में पहुँचल जाथ

Wednesday, January 28, 2009

हम सफर बन के साथ हैं

हम-सफर बन के हम साथ हैं आज भी
फिर भी है ये सफर अजनबी अजनबी
राह भी अजनबी मोड़ भी अजनबी
जाएँ हम किधर अजनबी अजनबी

ज़िन्दगी हो गई है सुलगता सफर
दूर तक आ रहा है धुंआ सा नज़र
जाने किस मोड़ पर खो गई हर खुशी
देके दर्द - ऐ - जिगर अजनबी अजनबी

हमने चुन चुन के तिनके बनाया था जो
आशियाँ हसरतों से सजाया था जो
है चमन में वही आशियाँ आज भी
लग रहा है मगर अजनबी अजनबी

किसको मालूम था दिन ये भी आयेंगे
मौसमों की तरह दिल भी बदल जायेंगे
दिन हुआ अजनबी रात भी अजनबी
हर घड़ी हर पहर अजनबी अजनबी

मदनपाल

हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं

हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं
जिंदा तो है जीने की अदा भूल गए हैं

खुश्बू जो लुटाते हैं मसलते हैं उसी को
एहसास का बदला ये मिलता है कली को

एहसास तो लेते है सिला भूल गए हैं
करते हैं मुहब्बत का और एहसास का सौदा

मतलब के लिए करते हैं ईमान का सौदा
डर मौत का और खौफ -ऐ -खुदा भूल गए हैं

अब मोम में ढलकर कोई पत्थर नहीं होता
अब कोई भी कुर्बान किसी पर नहीं होता
क्यूँ भटकते हैं मंजिल का पता भूल गए हैं

Thursday, January 15, 2009

मातृभाषा प्रेम

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।


अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन

पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।


उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय

निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय ।


निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय

लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय ।


इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग

तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग ।


और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात

निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात ।


तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय

यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय ।


विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार

सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ।


भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात

विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात ।


सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय

उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय ।


भारतेंदु हरिश्चंद्र

नींद आती ही नही

नींद आती ही नहीं धड़के की बस आवाज़ से

तंग आया हूँ मैं इस पुरसोज़ दिल के साज से


दिल पिसा जाता है उनकी चाल के अन्दाज़ से

हाथ में दामन लिए आते हैं वह किस नाज़ से


सैकड़ों मुरदे जिलाए ओ मसीहा नाज़ से

मौत शरमिन्दा हुई क्या क्या तेरे ऐजाज़ से


बाग़वां कुंजे कफ़स में मुद्दतों से हूँ असीर

अब खुलें पर भी तो मैं वाक़िफ नहीं परवाज़ से


कब्र में राहत से सोए थे न था महशर का खौफ़

वाज़ आए ए मसीहा हम तेरे ऐजाज़ से


बाए गफ़लत भी नहीं होती कि दम भर चैन हो

चौंक पड़ता हूँ शिकस्तः होश की आवाज़ से


नाज़े माशूकाना से खाली नहीं है कोई बात

मेरे लाश को उठाए हैं वे किस अन्दाज़ से


कब्र में सोए हैं महशर का नहीं खटका ‘रसा’

चौंकने वाले हैं कब हम सूर की आवाज़ से


भारतेंदु हरिश्चन्द्र

ख़फा

कभी दिल के अंधे कुंवे में पड़ा चीखता है

कभी खून में तैरता डूबता है

कभी हड्डियों की सुरंगों में बत्ती जला कर यूं ही घूमता है

कभी कान में आके चुपके से कहता है

'तू अब तलक जी रहा है?'

बड़ा बे-हया है

मेरे जिस्म में कौन है यह

जो मुझ से खफा है


मोहम्मद अलवी

ये रात ये तन्हाई

ये रात ये तन्हाई
ये दिल के धड़कने की आवाज़

ये सन्नाटा
ये डूबते तारॊं की

खा़मॊश गज़ल खवानी
ये वक्त की पलकॊं पर

सॊती हुई वीरानी
जज्बा़त ऎ मुहब्बत की

ये आखिरी अंगड़ाई
बजाती हुई हर जानिब

ये मौत की शहनाई
सब तुम कॊ बुलाते हैं

पल भर को तुम आ जाओ
बंद होती मेरी आँखों में

मुहब्बत का
एक ख्वाब़ सजा जाओ

मीना कुमारी

चाँद तन्हा है

चाँद तन्हा है आसमां तन्हा,
दिल मिला है कहाँ-कहाँ तन्हा

बुझ गई आस, छुप गया तारा,
थरथराता रहा धुआँ तन्हा

जिंदगी क्या इसी को कहते हैं,
जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा

हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी,
दोनों चलते रहें कहाँ तन्हा

जलती-बुझती-सी रोशनी के परे,
सिमटा-सिमटा-सा एक मकां तन्हा

राह देखा करेगा सदियॊं तक
छोड़ जायेंगे यह जहाँ तन्हा।

'मीना कुमारी '

खून क्यों सफ़ेद हो गया

ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बँट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।

खेतों में बारूदी गंध,
टुट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्याथित सी बितस्ता है।
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई।

अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता।
बात बनाएँ, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी

देखते देखते उतर भी गए

देखते देखते उतर भी गये
उन के तीर अपना काम कर भी गये

हुस्न पर भी कुछ आ गये इलज़ाम
गो बहुत अहल-ए-दिल के सर भी गये

यूँ भी कुछ इश्क नेक नाम ना था
लोग बदनाम उसको कर भी गये

कुछ परेशान से थे भी अहल-ए-जुनूंन
गेसु-ए-यार कुछ बिखर भी गए

आज उन्हें मेहरबान सा पाकर
खुश हुए और जी में डर भी गए

इश्क में रूठ कर दो आलम से
लाख आलम मिले जिधर भी गये

हूँ अभी गोश पुर सदा और वो
ज़ेर-ए-लब कह के कुछ मुकर भी गये


फ़िराक गोरखपुरी

ना जाना आज तक क्या शै खुशी है

ना जाना आज तक क्या शै खुशी है
हमारी ज़िन्दगी भी ज़िन्दगी है

तेरे गम से शिकायत सी रही है
मुझे सचमुच बडी शर्मिन्दगी है

मोहब्बत में कभी सोचा है यूं भी
कि तुझसे दोस्ती या दुश्मनी है

कोई दम का हूं मेहमां, मुंह ना फ़ेरो
अभी आंखों में कुछ कुछ रोशनी है

ज़माना ज़ुल्म मुझ पर कर रहा है
तुम ऐसा कर सको तो बात भी है

झलक मासूमियों में शोखियों की
बहुत रंगीन तेरी सादगी है

इसे सुन लो, सबब इसका ना पूछो
मुझे तुम से मोहब्बत हो गई है

सुना है इक नगर है आंसूओं का
उसी का दूसरा नाम आंख भी है

वही तेरी मोहब्बत की कहानी
जो कुछ भूली हुई, कुछ याद भी है

तुम्हारा ज़िक्र आया इत्तिफ़ाकन
ना बिगडो बात पर, बात आ गई है

फ़िराक गोरखपुरी

तुम आज हँसते हो हंस लो मुझपर ...

तुम आज हँसते हो हंस लो मुझ पर ये आज़माइश ना बार-बार होगी
मैं जानता हूं मुझे ख़बर है कि कल फ़ज़ा ख़ुशगवार होगी|

रहे मुहब्बत में ज़िन्दगी भर रहेगी ये कशमकश बराबर,
ना तुमको क़ुरबत में जीत होगी ना मुझको फुर्कत में हार होगी|

हज़ार उल्फ़त सताए लेकिन मेरे इरादों से है ये मुमकिन,
अगर शराफ़त को तुमने छेड़ा तो ज़िन्दगी तुम पे वार होगी|


ख्वाज़ा मीर 'दर्द'

साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया

साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया

बेकैफ़ियों के कैफ़ से घबरा के पी गया
तौबा को तोड़-तोड़ के थर्रा के पी गया

ज़ाहिद ये मेरी शोखी-ए-रिनदाना देखना
रेहमत को बातों-बातों में बहला के पी गया

सरमस्ती-ए-अज़ल मुझे जब याद आ गई
दुनिया-ए-ऎतबार को ठुकरा के पी गया

आज़ुर्दगी ए खा‍तिर-ए-साक़ी को देख कर
मुझको वो शर्म आई के शरमा के पी गया

ऎ रेहमते तमाम मेरी हर ख़ता मुआफ़
मैं इंतेहा-ए-शौक़ में घबरा के पी गया

पीता बग़ैर इज़्न ये कब थी मेरी मजाल
दरपरदा चश्म-ए-यार की शेह पा के पी गया

इस जाने मयकदा की क़सम बारहा जिगर
कुल आलम-ए-बसीत पर मैं छा के पी गया


जिगर मुरादाबादी

हर दम दुआएं देना

हर दम दुआएँ देना हर लम्हा आहें भरना
इन का भी काम करना अपना भी काम करना

याँ किस को है मय्यसर ये काम कर गुज़रना
एक बाँकपन पे जीना एक बाँकपन पे मरना

जो ज़ीस्त को न समझे जो मौत को न जाने
जीना उंहीं का जीना मरना उंहीं का मरना

हरियाली ज़िन्दगी पे सदक़े हज़ार जाने
मुझको नहीं गवारा साहिल की मौत मरना

रंगीनियाँ नहीं तो रानाइयाँ भी कैसी
शबनम सी नाज़नीं को आता नहीं सँवरना

तेरी इनायतों से मुझको भी आ चला है
तेरी हिमायतों में हर-हर क़दम गुज़रना

कुछ आ चली है आहट इस पायनाज़ की सी
तुझ पर ख़ुदा की रहमत ऐ दिल ज़रा ठहरना

ख़ून-ए-जिगर का हासिल इक शेर तक की सूरत
अपना ही अक्स जिस में अपना ही रंग भरना

जिगर मुरादाबादी

तेरी खुशी से अगर ग़म में भी खुशी ना हुई

तेरी खुशी से अगर ग़म में भी खुशी न हुई
वो ज़िंदगी तो मुहब्बत की ज़िंदगी न हुई!

कोई बढ़े न बढ़े हम तो जान देते हैं
फिर ऐसी चश्म-ए-तवज्जोह कभी हुई न हुई!

तमाम हर्फ़-ओ-हिकायत तमाम दीदा-ओ-दिल
इस एह्तेमाम पे भी शरह-ए-आशिकी न हुई

सबा यह उन से हमारा पयाम कह देना
गए हो जब से यहां सुबह-ओ-शाम ही न हुई

इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी
की हमने आह तो की उनसे आह भी न हुई

ख़्याल-ए-यार सलामत तुझे खुदा रखे
तेरे बगैर कभी घर में रोशनी न हुई

गए थे हम भी जिगर जलवा-गाह-ए-जानां में
वोह पूछते ही रहे हमसे बात ही न हुई


'जिगर मुरादाबादी "

Tuesday, January 13, 2009

सूरज का गोला

सूरज का गोला
इसके पहले ही कि निकलता
चुपके से बोला,
हमसे - तुमसे,
इससे - उससे
कितनी चीजों से
चिडियों से पत्तों से
फूलो - फल से,
बीजों से-"मेरे साथ - साथ सब निकलो
घने अंधेरे से
कब जागोगे, अगर न जागे, मेरे टेरे से ?"

आगे बढकर आसमान ने
अपना पट खोला
इसके पहले ही कि निकलता
सूरज का गोला
फिर तो जाने कितनी बातें हुईं
कौन गिन सके इतनी बातें हुईं
पंछी चहके कलियां चटकी
डाल - डाल चमगादड लटकी
गांव - गली में शोर मच गया
जंगल - जंगल मोर नच गया
जितनी फैली खुशियां
उससे किरनें ज्यादा फैलीं
ज्यादा रंग घोला
और उभर कर ऊपर आया
सूरज का गोला
सबने उसकी आगवानी में
अपना पर खोला

सब कुछ कह लेने के बाद

सब कुछ कह लेने के बाद,
कुछ ऐसा है जो रह जाता है,
तुम उसको मत वाणी देना।

वह छाया है मेरे पावन विश्वासों की,
वह पूँजी है मेरे गूँगे अभ्यासों की,
यह सारी रचना का क्रम है,
बस इतना ही मैं हूँ,
बस उतना ही मेरा आश्रय है,
तुम उसको मत वाणी देना।

यह पीड़ा है जो हमको,
तुमको, सबको अपनाती है,
सच्चाई है - अनजानों का भी हाथ पकड़ चलना सिखलाती है,
यहा गति है - हर गति को नया जन्म देती है,
आस्था है - रेती में भी नौका खेती है,
वह टूटे मन का सामर्थ है,
यह भटकी आत्मा का अर्थ है,
तुम उनको मत वाणी देना।

वह मुझसे या मेरे युग से भी ऊपर है,
वह आदी मानव की भाति है भू पर है,
बर्बरता में भी देवत्व की कड़ी है वह,
इसीलिए ध्वंस और नाश से बड़ी है वह,
अन्तराल है वह - नया सूर्य उगा देती है,
नए लोक, नई सृष्टि, नए स्वप्न देती है,
वह मेरी कृति है,
पर मैं उसकी अनुकृति हूँ,
तुम उसको मत वाणी देना।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(आभार जीत ताखर )

Monday, January 12, 2009

असिवन्त हिंद कितना प्रचंड होता है....(पाकिस्तान के लिए)

किरिचों पर कोई नया स्वप्न ढोते हो ?
किस नयी फसल के बीज वीर ! बोते हो ?
दुर्दान्त दस्यु को सेल हूलते हैं हम;
यम की दंष्ट्रा से खेल झूलते हैं हम।
वैसे तो कोई बात नहीं कहने को,
हम टूट रहे केवल स्वतंत्र रहने को।

सामने देश माता का भव्य चरण है,
जिह्वा पर जलता हुआ एक, बस प्रण है,
काटेंगे अरि का मुण्ड कि स्वयं कटेंगे,
पीछे, परन्तु, सीमा से नहीं हटेंगे।

फूटेंगी खर निर्झरी तप्त कुण्डों से,
भर जायेगा नागराज रुण्ड-मुण्डों से।
माँगेगी जो रणचण्डी भेंट, चढ़ेगी।
लाशों पर चढ़ कर आगे फौज बढ़ेगी।

पहली आहुति है अभी, यज्ञ चलने दो,
दो हवा, देश की आज जरा जलने दो।
जब हृदय-हृदय पावक से भर जायेगा,
भारत का पूरा पाप उतर जायेगा;

देखोगे, कैसा प्रलय चण्ड होता है !
असिवन्त हिन्द कितना प्रचण्ड होता है !

बाँहों से हम अम्बुधि अगाध थाहेंगे,
धँस जायेगी यह धरा, अगर चाहेंगे।
तूफान हमारे इंगित पर ठहरेंगे,
हम जहाँ कहेंगे, मेघ वहीं घहरेंगे।

जो असुर, हमें सुर समझ, आज हँसते हैं,
वंचक श्रृगाल भूँकते, साँप डँसते हैं,
कल यही कृपा के लिए हाथ जोडेंगे,
भृकुटी विलोक दुष्टता-द्वन्द्व छोड़ेंगे।
गरजो, अम्बर की भरो रणोच्चारों से,
क्रोधान्ध रोर, हाँकों से, हुंकारों से।

यह आग मात्र सीमा की नहीं लपट है,
मूढ़ो ! स्वतंत्रता पर ही यह संकट है।
जातीय गर्व पर क्रूर प्रहार हुआ है,
माँ के किरीट पर ही यह वार हुआ है।

अब जो सिर पर आ पड़े, नहीं डरना है,
जनमे हैं तो दो बार नहीं मरना है।
कुत्सित कलंक का बोध नहीं छोड़ेंगे,
हम बिना लिये प्रतिशोध नहीं छोड़ेंगे,
अरि का विरोध-अवरोध नहीं छोड़ेंगे,
जब तक जीवित है, क्रोध नहीं छोड़ेंगे।

गरजो हिमाद्रि के शिखर, तुंग पाटों पर,
गुलमार्ग, विन्ध्य, पश्चिमी, पूर्व घाटों पर,
भारत-समुद्र की लहर, ज्वार-भाटों पर,
गरजो, गरजो मीनार और लाटों पर।

खँडहरों, भग्न कोटों में, प्राचीरों में,
जाह्नवी, नर्मदा, यमुना के तीरों में,
कृष्णा-कछार में, कावेरी-कूलों में,
चित्तौड़-सिंहगढ़ के समीप धूलों में—
सोये हैं जो रणबली, उन्हें टेरो रे !
नूतन पर अपनी शिखा प्रत्न फेरो रे !

झकझोरो, झकझोरो महान् सुप्तों को,
टेरो, टेरो चाणक्य-चन्द्रगुप्तों को;
विक्रमी तेज, असि की उद्दाम प्रभा को,
राणा प्रताप, गोविन्द, शिवा, सरजा को;
वैराग्यवीर, बन्दा फकीर भाई को,
टेरो, टेरो माता लक्ष्मीबाई को।

आजन्मा सहा जिसने न व्यंग्य थोड़ा था,
आजिज आ कर जिसने स्वदेश को छोड़ा था,
हम हाय, आज तक, जिसको गुहराते हैं,
‘नेताजी अब आते हैं, अब आते हैं;
साहसी, शूर-रस के उस मतवाले को,
टेरो, टेरो आज़ाद हिन्दवाले को।

खोजो, टीपू सुलतान कहाँ सोये हैं ?
अशफ़ाक़ और उसमान कहाँ सोये हैं ?
बमवाले वीर जवान कहाँ सोये हैं ?
वे भगतसिंह बलवान कहाँ सोये हैं ?
जा कहो, करें अब कृपा, नहीं रूठें वे,
बम उठा बाज़ के सदृश व्यग्र टूटें वे।

हम मान गये, जब क्रान्तिकाल होता है,
सारी लपटों का रंग लाल होता है।
जाग्रत पौरुष प्रज्वलित ज्वाल होता हैं,
शूरत्व नहीं कोमल, कराल होता है।

लोहे के मर्द

लोहे के मर्द
प्रस्तुत कवित श्री रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा रचित है.

पुरुष वीर बलवान,
देश की शान,
हमारे नौजवान
घायल होकर आये हैं।

कहते हैं, ये पुष्प,
दीप,अक्षत क्यों लाये हो?

हमें कामना नहीं सुयश-विस्तार की,
फूलों के हारों की, जय-जयकार की।

तड़प रही घायल स्वदेश की शान है।
सीमा पर संकट में हिन्दुस्तान है।

ले जाओ आरती, पुष्प, पल्लव हरे,
ले जाओ ये थाल मोदकों ले भरे।

तिलक चढ़ा मत और हृदय में हूक दो,
दे सकते हो तो गोली-बन्दूक दो।

Friday, January 9, 2009

खवाब का द्वार बंद है

मेरे लिए रात ने आज फ़राहम
किया एक नया मर्हला
नींदों ने ख़ाली किया
अश्कों से फ़िर भर दिया
कासा मेरी आँख का और
कहा कान में मैंने
हर एक जुर्म से
तुमको बरी कर दिया
मैंने सदा के लिए
तुमको रिहा कर दिया जाओ
जिधर चाहो
तुम जागो कि
सो जाओ तुम
ख़्वाब का दर बंद है


शहरयार

उस रोज़ भी.....

उस रोज़ भी रोज़ की तरह
लोग वह मिट्टी खोदते रहे

जो प्रकृति से वंध्या थी
उस आकाश की गरिमा पर

प्रार्थनाएँ गाते रहे
जो जन्मजात बहरा था

उन लोगों को सौंप दी यात्राएँ
जो स्वयं बैसाखियों के आदी थे

उन स्वरों को छेड़ा
जो सदियों से मात्र संवादी थे

पथरीले द्वारों पर
दस्तकों का होना भर था
वह न होने का प्रारंभ था

अचल वाजपेयी

हाशिया ..

लिखते हुए पृष्ठ पर
हाशिया छूट गया है

इन दिनों ढिठाई पर उतारू है
मैंने पहली बार देखा

हाशिया कोरा है, सपाट है
किन्तु बेहद झगड़ालू है

वह सार्थक रचनाएँ
कूड़े के भाव बेच देता है

कुशल गोताखोर सा
समुद्र में गहरे पैठता है

रस्सियाँ हिलाता है
मैं उसे खींचना चाहता हूँ

वह अतल से मोती ला रहा है
सबसे चमकदार मोती

मैं उसे तुम्हीं को
सौंपना चाहता हूँ

अचल वाजपेयी

कोई बिल्ली ही आए ..

रात रात भर
शब्‍द
रेंगते रहते हैं मस्तिष्‍क में
नींद और जागरण की
धुंधली दुनिया में
फँसा मैं
रच नहीं पाता कविता

पक्षियों की कतार
आसमान में गुज़रती जाती है
और चांद यूँ ही ताकता रहता है धरती को
और दोस्‍त
लिखते रहते हैं कविता
नीली और गुलाबी कापियों पर
वे भरती जाती हैं

भर जाती हैं एक रात
टूटी हुई नींद और अधूरे सपनों से
सूरज के अग्निगर्भ में पिघलती रहती है
रात
मेरी तलहथियों का
पसीना सूख जाता है
आंखों में पसर जाती है उदासी
और रात सुलग रही होती है
मेरे अधूरे सपनों में

सड़े पानी सी गंधाती रहती हैं स्‍मृतियाँ
भाप उठती रहती है
निस्‍तब्‍ध शांति है चारों ओर
कि एक पत्‍ता
भी नहीं खड़कता
जैसे पृथ्‍वी अचानक भूल गयी हो घूमना
जैसे दुनिया में किसी भूकंप
किसी ज्‍वालामुखी के फटने
किसी समंदर के उफनने
किसी पहाड़ के ढहने की
कोई आशंका ही ना बची हो

भय होता है ऐसी शांति से
कोई बिल्‍ली ही आए
या कोई चूहा गिरा जाए पानी का ग्‍लास
कुछ तो हिले बदले कुछ
चिचियाते पक्षी बदलते जाते हैं
इंसानों में
सूरज का रंक्तिम लाल रंग
फैलता जाता है आसमानों में चारो ओर
पर कलियाँ
गुस्‍से में बंद हों जैसे और
फूलों में तब्‍दीली से इनकार हो उन्‍हें...

" अच्युतानंद मिश्र"

वो इत्तेफाक से रस्ते में मिल गया ..

वो इत्तेफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे
मैं देखता था उसे और वो देखता था मुझे

अगरचे उसकी नज़र में थी नाशनासाई
मैं जानता हूँ कि बरसों से जानता था मुझे

तलाश कर न सका फिर मुझे वहाँ जाकर
ग़लत समझ के जहाँ उसने खो दिया था मुझे

बिखर चुका था अगर मैं तो क्यों समेटा था
मैं पैरहन था शिकस्ता तो क्यों सिया था मुझे

है मेरा हर्फ़-ए-तमन्ना, तेरी नज़र का क़ुसूर
तेरी नज़र ने ही ये हौसला दिया था मुझे

अख्तर अंसारी

Wednesday, January 7, 2009

जो जले थे कल

जो जले थे कल उन्हीं में था तुम्हारा घर मियां।
सुधर जाओ वक्त कल ये दे न दे अवसर मियां।।

एक दिन सिर आपका भी फूटना तय मानिए।
मत थमाओ बालकों के हाथ में पत्थर मियां।।

मौज झम्मन की रही झटके हुसैनी ने सहे।
ज़िंदगी की राह में होता रहा अक्सर मियां।।

क्यों हिमाकत कर रहा है सच बयां करने की तू।
देखना टकराएंगे माथे से कुछ पत्थर मियां।।

पांव नंगे हैं, चले हम ग़र्म रेती पर सदा।
और कांधों पर सलीबों का रह लश्कर मियां।।

ढूंढ़ती मंज़िल रही पर घर नहीं जिसका मिला।
फिर भी चलता ही रहा दिल एक यायावर मियां।।


राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर'

दिल में गुलशन !!



दिल में गुलशन आंख में सपना सुहाना रख।
आस्मां की डालियों पर आशियाना रख।।


हर कदम पर एक मुश्किल ज़िंदगी का नाम।
फिर से मिलने का मगर कोई बहाना रख।।

अर्थ में भर अर्थ की अभिव्यंजना का अर्थ।
शक की सीमा के आगे भी निशाना रख।।

कफ़स का ये द्वार टूटेगा नहीं सच है, मगर।
हौसला रख अपना ये पर फड़फ़ड़ाना रख।।

तेरे जाने के पर जिसे दुहराएगी महफ़िल।
वक्त की आंखों में एक ऐसा फसाना रख।।

दर्द की दौलत से यायावर हुआ है तू।
पांव की ठोकर के आगे ये ज़माना रख।।


राम स्नेहीलाल शर्मा 'यायावर'

वायलिन

एक लहर बहाकर ले जाती है
मुझे
साथ ही बहकर जाती है उदासी
कुंठाएं
पाने और खोने की पीड़ा

वायलिन वादक की आँखों से टपकती संवेदना
हौले से
अपनी आँखों में समा लता हूँ
मेरे रोम-रोम में होती है
अजीब-सी सिहरन
यह कौन सी धुन है

जो मेरी आँखों से आँसू की बरसात
करवा देती है
मेरे भीतर घुमड़ती हुई घुटन
बर्फ़ की तरह पिघलने लगती है

मुझे याद है ऎसी ही किसी तान को
सुनते हुए
कभी भीड़ के बीच चुपचाप
रोता रहा था
कभी ऎसी ही तान को सुनकर
रात भर गुमसुम सा
जागता रहा था

मैं भूल जाता हूँ विषाद की खरोंचों को
दुनियादारी की तमाम विकृतियों को
एक लहर बहाकर ले जाती है
मुझे
मेरे भीतर समाता जाता है उल्लास


"दिनकर कुमार'

मैं आपकी भावनाओं का अनुवाद बनना चाहता हूँ

मैं आपकी भावनाओं का अनुवाद बनना चाहता हूँ
दर्द से भीगे हुए शब्दों को
सही-सही
आकार देना चाहता हूँ

मैं आपके क्रोध को तर्कपूर्ण और
आपके क्षोभ को बुद्धिसंगत बनाना चाहता हूँ
मैं चाहता हूँ आपके एकाकीपन की टीस का
विस्तार हो अजनबी सीने में भी
मैं चाहता हूँ उपेक्षा के दंश को अनुभव करें
प्राथमिकता के सोपान पर बैठे महानुभाव भी

मैं आपकी घुटन को व्यक्त करना
चाहता हूँ
परिभाषित करना चाहता हूँ
आपकी ख़ामोशी को
पलकों पर ठहरे हुए सपने को

मैं आपकी भावनाओं का अनुवाद
बनना चाहता हूँ
हू-ब-हू पेश करना चाहता हूँ
आपकी यंत्रणा को
आपके उल्लास को ।


"दिनकर कुमार"

Saturday, January 3, 2009

सामने जो है लोग उसे बुरा कहते हैं.


सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा कहते हैं

ज़िन्दगी को भी सिला कहते हैं कहनेवाले
जीनेवाले तो गुनाहों की सज़ा कहते हैं
फ़ासले उम्र के कुछ और बढा़ देती है
जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं
चंद मासूम से पत्तों का लहू है "फ़ाकिर"
जिसको महबूब के हाथों की हिना कहते हैं
सुदर्शन फाकिर

ज़िन्दगी यूँ ही बसर हुई तनहा !!!!!!!

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तनहा
काफिला साथ और सफर तन्हा

अपने साये से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस कदर तन्हा

रात भर बोलते हैं सन्नाटे
रात काटे कोई किधर तन्हा

दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा

हमने दरवाज़े तक तो देखा था
फिर न जाने गए किधर तन्हा

"गुलज़ार"

सब डरते हें आज हवस के इस सहरा में...

सब डरते हैं, आज हवस के इस सहरा में बोले कौन
इश्क तराजू तो है, लेकिन, इस पे दिलों को तौले कौन

सारा नगर तो ख्वाबों की मैयत लेकर श्मशान गया
दिल की दुकानें बंद पडी है, पर ये दुकानें खोले कौन

काली रात के मुंह से टपके जाने वाली सुबह का जूनून
सच तो यही है, लेकिन यारों, यह कड़वा सच बोले कौन

हमने दिल का सागर मथ कर कढा तो कुछ अमृत
लेकिन आयी, जहर के प्यालों में यह अमृत घोले कौन

लोग अपनों के खूँ में नहा कर गीता और कुरान पढ़ें
प्यार की बोली याद है किसको, प्यार की बोली बोले कौन।

"डॉ राही मासूम रज़ा"

जिनसे हम छूट गए


जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं
शाख़-ऐ-गुल कैसे हैं खुश्‍बू के मकाँ कैसे हैं ।।


ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशाँ कैसे हैं ।।

कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आके देखो मेरी यादों के जहाँ कैसे हैं ।।

मैं तो पत्‍थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया
आज उस शहर में शीशे के मकाँ कैसे हैं ।।

जिनसे हम छूट गये अब वो जहां कैसे हैं ।।


"डॉ राही मासूम रज़ा "

अजनबी शहर के ...

अजनबी शहर के अजनबी रास्ते , मेरी तन्हाईयों पे मुस्कुराते रहे ।
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे ।।

ज़ख्म मिलता रहा, ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
जिंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे ।।

ज़ख्म जब भी कोई ज़हनो दिल पे लगा, तो जिंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
हम भी किसी साज़ की तरह हैं, चोट खाते रहे और गुनगुनाते रहे ।।

कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
इतनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे ।।

सख्त हालात के तेज़ तूफानों, गिर गया था हमारा जुनूने वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।।

"डॉ राही मासूम रज़ा"

हम तो हैं परदेस में...

हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चाँद
अपनी रात की छत पर कितना तनहा होगा चांद

जिन आँखों में काजल बनकर तैरी काली रात
उन आँखों में आँसू का इक, कतरा होगा चांद

रात ने ऐसा पेंच लगाया, टूटी हाथ से डोर
आँगन वाले नीम में जाकर अटका होगा चांद

चांद बिना हर दिन यूँ बीता, जैसे युग बीते
मेरे बिना किस हाल में होगा, कैसा होगा चांद

"डॉ राही मासूम रज़ा"

Friday, January 2, 2009

मेरी प्यारी बेटी 'आर्यकी' के नाम उसके जन्मदिन पर


आँखें मलकर धीरे-धीरे
सूरज जब जग जाता है ।
सिर पर रखकर पाँव अँधेरा
चुपके से भग जाता है ।
हौले से मुस्कान बिखेरी
पात सुनहरे हो जाते ।
डाली-डाली फुदक-फुदक कर
सारे पंछी हैं गाते ।
थाल भरे मोती ले करके
धरती स्वागत करती है ।
नटखट किरणें वन-उपवन में
खूब चौंकड़ी भरती हैं ।
कल-कल बहती हुई नदी में
सूरज खूब नहाता है
कभी तैरता है लहरों पर
डुबकी कभी लगाता है ।


रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
आवत है वन ते मनमोहन, गाइन संग लसै ब्रज-ग्वाला ।
बेनु बजावत गावत गीत, अभीत इतै करिगौ कछु रत्याना ।
हेरत हेरित चकै चहुँ ओर ते झाँकी झरोखन तै ब्रजबाला ।
देखि सुआनन को रसखनि तज्यौ सब द्योस को ताप कसाला ।

"रसखान"
















आप सभी के जीवन में नया साल ढेर
सारी खुशियाँ लेकर आए ,
आप के जीवन में खुशियों की बगिया महकती रहे.

वर्ष २००९ आप सब को शुभ रहे !