तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है
अपने बदन को देख ले छूकर मेरे बदन की मिट्टी है
भूखी प्यासी भटक रही है दिल में कहीं उम्मीद् लिये
हम और तुम जिस में खाते थे उस बर्तन की मिट्टी है
ग़ैरों ने कुछ् ख़्वाब दिखाकर नींद चुरा ली आँखों से
लोरी दे दे हार गई जो घर आँगन की मिट्टी है
सोच समझकर तुम ने जिस के सभी घरोन्दे तोड़ दिये
अपने साथ जो खेल रहा था उस बचपन की मिट्टी है
चल नफ़रत को छोड़ के 'अंजुम' दिल के रिश्ते जोड़ के 'अंजुम'
इस मिट्टी का क़र्ज़ उतारें अपने वतन की मिट्टी है
"सरदार अंजुम"
Monday, December 29, 2008
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