Tuesday, April 7, 2009

यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे

यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
कांधे पे अपने रख के अपना मजार गुज़रे

बैठे रहे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ से एक दिन बहार गुज़रे

बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतारे कोई तो पार गुज़रे

तू ने भी हम को देखा हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे



मीना कुमारी 'नाज़'

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