यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
कांधे पे अपने रख के अपना मजार गुज़रे
बैठे रहे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ से एक दिन बहार गुज़रे
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतारे कोई तो पार गुज़रे
तू ने भी हम को देखा हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे
मीना कुमारी 'नाज़'
Tuesday, April 7, 2009
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