बना गुलाब तो कांटें चुभा गया इक शख्स
हुआ चिराग तो घर ही जला गया इक शख्स
तमाम रंग मेरे और सारे ख्वाब मेरे
फ़साना कह के फ़साना बना गया इक शख्स
मैं किस हवा में उडूं किस फजा में लहराऊँ
दुखों के जाल हर -सू बिछा गया इक शख्स
पलट सकूँ मैं न आगे बढ़ सकूँ जिस पर
मुझे ये कौन से रास्ते लगा गया इक शख्स
मुहब्बतें भी अजीब उस की नफरतें भी कमाल
मेरी तरह का ही मुझ में समा गया इक शख्स
वो महताब था मरहम -बा -दस्त आया था
मगर कुछ और सिवा दिल दुखा गया इक शख्स
[बा -दस्त = हाथ में ; सिवा = ज्यादा ]
खुला ये राज़ के आइना -खाना है दुनिया
और इस में मुझ को तमाशा बना गया इक शख्स
[आइना -खाना = शीशे का घर ]
ओबैदुल्लाह अलीम
Saturday, April 4, 2009
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