Saturday, July 10, 2010

हौसला शर्त-ए-वफ़ा क्या करना

हौसला शर्त-ए-वफ़ा क्या करना
बंद मुट्ठी में हवा क्या करना

जब न सुनता हो कोई बोलना क्या
क़ब्र में शोर बपा क्या करना

क़हर है, लुत्फ़ की सूरत आबाद
अपनी आँखों को भी वा क्या करना

दर्द ठहरेगा वफ़ा की मंज़िल
अक्स शीशे से जुदा क्या करना

शमा-ए-कुश्ता की तरह जी लीजे
दम घुटे भी तो गिला क्या करना

मेरे पीछे मेरा साया होगा
पीछे मुड़कर भी भला क्या करना

कुछ करो यूँ कि ज़माना देखे
शोर गलियों में सदा क्या करना


किश्वर नाहिद

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