Monday, December 29, 2008

उठो धरा के अमर सपूतो ....

उठो धरा के अमर सपूतो
पुनः नया निर्माण करो ।

जन-जन के जीवन में फिर से
नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो ।

नया प्रात है, नई बात है,
नई किरण है, ज्योति नई ।

नई उमंगें, नई तरंगे,
नई आस है, साँस नई ।

युग-युग के मुरझे सुमनों में,
नई-नई मुसकान भरो ।

डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ
नए स्वरों में गाते हैं ।

गुन-गुन, गुन-गुन करते भौंरे
मस्त हुए मँडराते हैं ।

नवयुग की नूतन वीणा में
नया राग, नवगान भरो ।

कली-कली खिल रही इधर
वह फूल-फूल मुस्काया है ।

धरती माँ की आज हो रही
नई सुनहरी काया है ।

नूतन मंगलमयी ध्वनियों से
गुँजित जग-उद्यान करो ।

सरस्वती का पावन मंदिर
यह संपत्ति तुम्हारी है ।

तुम में से हर बालक इसका
रक्षक और पुजारी है ।

शत-शत दीपक जला ज्ञान के
नवयुग का आव्हान करो ।

उठो धरा के अमर सपूतो,
पुनः नया निर्माण करो ।


द्वारिका प्रसाद महेश्वरी

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