कभी दिल के अंधे कुंवे में पड़ा चीखता है
कभी खून में तैरता डूबता है
कभी हड्डियों की सुरंगों में बत्ती जला कर यूं ही घूमता है
कभी कान में आके चुपके से कहता है
'तू अब तलक जी रहा है?'
बड़ा बे-हया है
मेरे जिस्म में कौन है यह
जो मुझ से खफा है
मोहम्मद अलवी
हुजूर आप इस ब्लॉग में कुछ मेरी पसंद की हिन्दी की कवितायें व उर्दू की ग़ज़ल और नज्मों का लुत्फ़ उठा सकते हैं. आप कुछ सुझाव देना चाहे तो आपका तहेदिल से स्वागत है.
No comments:
Post a Comment