Friday, February 6, 2009

पूछते हो तो सुनो, कैसे बसर होती है

पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है 
 रात खैरात की सदके की सहर होती है 
 साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब 
 दिल ही दुखता है ना अब आस्तीन तर होती है 
 जैसे जागी हुई आंखों में चुभें कांच के ख्वाब 
 रात इस तरह दीवानों की बसर होती है 
 गम ही दुश्मन है मेरा गम ही को दिल ढूंढ़ता है 
 एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है 
 एक मरकज़* की तलाश एक भटकती खुश्बू
 कभी मंजिल कभी तम्हीद* -ऐ -सफर होती है 

  स्व मीना कुमारी *[markaz=focus; tamhiid=prelude/preamble]

1 comment:

  1. नम्बर एक ब्लॉग बनाने की दवा ईजाद देश,विदेशों में बच्ची धूम!!

    http://yaadonkaaaina.blogspot.com/2009/02/blog-post_7934.html

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