Saturday, January 3, 2009

जिनसे हम छूट गए


जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं
शाख़-ऐ-गुल कैसे हैं खुश्‍बू के मकाँ कैसे हैं ।।


ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशाँ कैसे हैं ।।

कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आके देखो मेरी यादों के जहाँ कैसे हैं ।।

मैं तो पत्‍थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया
आज उस शहर में शीशे के मकाँ कैसे हैं ।।

जिनसे हम छूट गये अब वो जहां कैसे हैं ।।


"डॉ राही मासूम रज़ा "

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