Wednesday, January 7, 2009

जो जले थे कल

जो जले थे कल उन्हीं में था तुम्हारा घर मियां।
सुधर जाओ वक्त कल ये दे न दे अवसर मियां।।

एक दिन सिर आपका भी फूटना तय मानिए।
मत थमाओ बालकों के हाथ में पत्थर मियां।।

मौज झम्मन की रही झटके हुसैनी ने सहे।
ज़िंदगी की राह में होता रहा अक्सर मियां।।

क्यों हिमाकत कर रहा है सच बयां करने की तू।
देखना टकराएंगे माथे से कुछ पत्थर मियां।।

पांव नंगे हैं, चले हम ग़र्म रेती पर सदा।
और कांधों पर सलीबों का रह लश्कर मियां।।

ढूंढ़ती मंज़िल रही पर घर नहीं जिसका मिला।
फिर भी चलता ही रहा दिल एक यायावर मियां।।


राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर'

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