सब डरते हैं, आज हवस के इस सहरा में बोले कौन
इश्क तराजू तो है, लेकिन, इस पे दिलों को तौले कौन
सारा नगर तो ख्वाबों की मैयत लेकर श्मशान गया
दिल की दुकानें बंद पडी है, पर ये दुकानें खोले कौन
काली रात के मुंह से टपके जाने वाली सुबह का जूनून
सच तो यही है, लेकिन यारों, यह कड़वा सच बोले कौन
हमने दिल का सागर मथ कर कढा तो कुछ अमृत
लेकिन आयी, जहर के प्यालों में यह अमृत घोले कौन
लोग अपनों के खूँ में नहा कर गीता और कुरान पढ़ें
प्यार की बोली याद है किसको, प्यार की बोली बोले कौन।
"डॉ राही मासूम रज़ा"
Saturday, January 3, 2009
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